क्यों करना चाहिए हमें संध्या वंदन? क्या है इसके लाभ?

संध्या वंदन-  सूर्य तथा तारों से रहित दिन और रात की संधि को हमारे मुनियों ने संध्याकाल माना है। हमारे धर्म ग्रन्थ वेद, पुराण, रामायण,महाभारत, गीता और सभी ग्रंथों में संध्या वंदन की महिमा और महत्त्व का वर्णन किया गया है। इसके द्वारा हम प्रकृति तथा ईश्वर के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं। जिससे हमारे अंदर सकारात्मकता का विकास होता है। इससे हमारी सभी मनोकामनाएं पूर्ति होती है और सभी प्रकार के रोग तथा शोक का नाश होता है।  आज हम संध्या वंदन के बारे में जानेंगे।

 

संध्या वंदन को संध्योपासना भी कहा जाता है। शास्त्र अनुसार पांच संधि काल होते हैं जिसमे संध्या वंदन किया जाता है। लेकिन प्रातः काल और संध्या काल की संधि प्रमुख है। इस समय शौच, आचमन, प्राणायामादि करके किसी मंदिर या एकांत में गायत्री छंद से निराकार ईश्वर की पूजा की जाती है। इस समय यदि मौन रहने मात्र से शरीर और मन में स्थित सरे दुखों का नाश होता है। इस समय भोजन, नींद, वार्तालाप, संभोग जैसे कामों का त्याग करना चाहिए। क्योंकि संध्या वंदन में शास्त्र अनुसार पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है। यह सर्व सत्य है। इसमे प्रार्थना को सर्वश्रेष्ठ माना गया है।

वेदज्ञ तथा ईश्वरपरायण लोग इस समय प्रार्थना करते हैं। भक्त कीर्तन करते हैं। पौराणिक लोग देवी-देवता के मूर्ति के समक्ष पूजा करते हैं। और ज्ञानीजन ध्यान-साधना करते हैं। इन्हीं कामों से संध्योपासना के चार प्रकार हुए: १) प्रार्थना २) ध्यान ३) कीर्तन और ४) पूजा-आरती।

 

१) प्रार्थना:

इसको उपासना और आराधना करना भी कहा जाता है। इसमे हम ईश्वर के प्रति कृतज्ञता का भाव व्यक्त करते हैं। इसमें हम केवल उस परम शक्ति से प्रार्थना करते हैं।

 

२) ध्यान:

ध्यान अर्थात जागरूकता। इसमें हम केवल ध्यान देते हैं उन चीजों पे जो हमारे आस-पास, हमारे शरीर और मन पर घटित हो रहा है। अपने मन में उठ रहे सभी विचारों के ऊपर। ध्यान करने से हमारी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है तथा मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं।

 

३) कीर्तन:

अर्थात ईश्वर और गुरु के प्रति भक्ति और समर्पण भाव को व्यक्त करना। कीर्तन अर्थात भजन जिसमे हम गीतों अर्थात भजनों के द्वारा भक्ति भाव को प्रकट करना।

 

४) पूजा-आरती:

ईश्वर को कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए ये एक उत्तम और सबसे अच्छा नियम है। इसमें हम गुड़ और घी की धुप दी जाती है। तत्पश्च्यात हल्दी, कुमकुम, दीप तथा अगरबत्ती से घर में स्थित देवी-देवता की पूजा और आरती की जाती है।
हमारे शास्त्रों में संध्या वंदन सर्वोपरि है, जिसमे प्रार्थना करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है। प्रार्थना को हमारे ऋषि और मुनि ने स्तुति या वंदना कहा।