देवियों को कुमकुम चढ़ाने का क्या है महत्त्व

कुमकुम या चन्दन, मान्यताओं के अनुसार हमेशा अपने माथे पे दोनों भौं के बीच लगाना चाहिए क्योंकि इसे लगाना हमारे शास्त्रों में शुभ माना जाता है। इसलिए पूजा के दौरान हमेशा मस्तिष्क पे कुमकुम का तिलक लगाया जाता है। और हमारे संस्कृति और शास्त्र में सुहागन औरत कुमकुम के सिंगार के बिना अधूरी मानी जाती है। इसलिए आज हम कुमकुम को लगाने के वैज्ञानिक और धार्मिक कारण के बारे में जानेंगे।

देवी पूजा में कुमकुम का महत्त्व:

हमारे शास्त्रों में बताया गया है की अगर सुहागन औरतें तीज, किसी पर्व या व्रत में कुमकुम से देवी की पूजा करती हैं तो उनके जीवनसाथी(पति) को लंबी उम्र का आशीर्वाद मिलता है। और अविवाहित कन्या अगर कुमकुम से देवी माँ की पूजा करती है तो उन्हें अच्छे जीवनसाथी मिलने का आषीड्ढ मिलता है।इसी कारणवश देवी को कुमकुम अर्पित किया जाता है जबकि देवताओं को तिलक व पूजा के दौरान चन्दन अर्पित किया जाता है।

 

कुमकुम लगाने के वैज्ञानिक तर्क:

कुमकुम में हल्दी का चूर्ण होता है जिसमे हम नींबू के रस को अगर मिलाते है तो वो लाल रंग का हो जाता है। आयुर्वेद के अनुसार कुमकुम त्वचा के शोधन के लिए बहुत ही अच्छी औषधी माना जाता है। प्राकृतिक औषधी होने के कारण कुमकुम का तिलक लगाने से हमारे मस्तिष्क की सारी तंतुओं में क्षीणता नहीं आती।

 

कुमकुम लगाने के धार्मिक तर्क:

शास्त्रों के अनुसार कुमकुम को एक तरह सौभाग्य सामग्री माना जाता है। और इसी कारण हमारे शास्त्रों में कुमकुम को सिंगार के तौर पे उपयोग किया जाता है और यह देवियों को प्रिय है।

 

 

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