जानें शास्त्रों में क्यों माना गया अमावस्या को महत्वपूर्ण

आज के समय में कई बार ऐसा होता है की किसी भी व्रत या त्यौहार के बारे में ठीक से न पता होने से उसके लिए किये गए पूजा या उपवास भंग हो जाते हैं। इसलिए पंचांग और तिथि के संबंध में साधारण बातें और उनसे जुड़ी सारी जानकारियां हमें पता होनी चाहिए। इसलिए आज हम जानेंगें अमावस्या के बारे में ऐसे ही कुछ रोचक जानकारियां।

 

हिन्दू शास्त्रों में अनुसार एक महीने को १५-१५ दिनों के दो भागों में विभाजित किया गया है – शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। शुक्ल पक्ष में चंद्रमा की आकृति पूर्ण रूप में रहती है तथा कृष्ण पक्ष में चंद्र कलाओं का क्षय होता है। मतान्तर अनुसार एक मत शुक्ल पक्ष के पहले दिन या प्रतिपदा तिथि से महीने की शुरुआत माना जाता है, वहीं दूसरा मत कृष्ण पक्ष के पहले दिन से माह का आरम्भ होता है। इस क्रम के अनुसार कृष्ण पक्ष का पंद्रहवा दिन या अंतिम तिथि अमावस्या कहलाती है।

 

शास्त्रों में चंद्रमा की सोलहवें कला को अमा के नाम से जाना जाता है। स्कन्दपुराण में एक श्लोक है:

अमा षोडशभागेन देवि प्रोक्ता महाकला।

संस्थिता परमा माया देहिनां देहधारिणी ।।

 

जिसका मतलब होता है चन्द्रमण्डल की अमा एक माहकला है, जिसमे चंद्रमा की सभी सोलह कलाओं की शक्ति शामिल है। जिसका क्षय और उदय दोनों नहीं हो सकता। इसे अगर हम आसानी पूर्वक कहें तो कह सकते है:

सूर्य और चंद्र के मिलान को अमावस्या कहा जाता है। इसलिए शास्त्रों में इसे कई नामों से जाना जाता है – अमावस्या, सूर्य-चंद्र संगम, पंचदशी, अमावासी और अमामासी।

जब अमावस्या के दिन चंद्र कला नहीं दिखती, तब उसे कुहू अमावस्या के नाम से जाना जाता है। हमेशा अमावस्या महीने में सिर्फ एक बार ही आता है। शास्त्रों में अमावस्या तिथि का स्वामी पितृदेव को माना जाता है। इसलिए अमावस्या के दिन पितरों की तृप्ति के लिए तर्पण, दान-पुण्य दोनों की महत्ता है। अमावस्या का योग पवित्र तभी माना जाता है जब ये दिन सोम, मंगलवार और गुरुवार के साथ जब अनुराधा, विशाखा और स्वाति नक्षत्र का योग बनता है।

 

इसी प्रकार जब शनिवार और चतुर्दशी का योग भी विशेष फल देने वाला माना जाया है। अगर ऐसा योग बना है तो इस अमावस्या के दिन तीर्थस्नान, जप, तप और व्रत के पुण्य से ऋण और पापों से छुटकारा मिलता है। इसलिए शास्त्रों में इस दिन संयम, साधना और तप के लिए श्रेष्ठ माना गया है।

 

पुराणों में बताये गए अमावस्या और कुछ व्रतों के विधान:

सोमवती अमावस्या:

सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते हैं जो की साल में केवल एक दिन ही आता है। ये अमावस्या हिन्दू धर्म में विशेष महत्त्व रखता है। इस दिन विवाहित स्त्रियों को अपने पतियों के दीर्घायु कामना का व्रत करना चाहिए।

 

अमावस्या पयोव्रत:

इस अमावस्या व्रत में सिर्फ पिने के लिए दूध ही ग्रहण किया जाता है। और भगवन श्री हरी की आराधना की जाती है। यह व्रत पुरे एक वर्ष तक किया जाता है। इस व्रत से तन-मन और धन के कष्टों से मुक्ति मिलती है।

 

अमावस्या व्रत:

कर्म पुराण में बताया गया है की इस दिन शिवजी की पूजा के साथ-साथ व्रत करना चाहिए। इससे व्रती के गंभीर पीड़ाओं का शमन होता है।

 

वट सावत्री पूजा:

ये व्रत पति की लंबी उम्र और परिवार की खुशहाली के लिए ज्येष्ठ अमावस्या के दिन किया जाता है।