ज्वाला माता जहाँ माँ खुद ही जलती है बिना रुके वो भी बिना किसी ईधन के| जी हाँ हिमाचल प्रदेश मे कांगड़ा से ३० किलोमीटर दूर स्थित है माँ ज्वाला का मंदिर| हमारे पौराणिक गाथाओं के अनुसार इस मंदिर को ५ पांडवों ने खोजा था| इनकी उत्पत्ति की कहानी माँ सती से संबंधित है |
मान्यता है की इस जगह पे माँ सती का जिभा गिरा था जो आज यहाँ ज्वाला के रूप मे सुसोभित है | इस मंदिर मे किसी मूर्ति रूप मे उपस्थित किसी देवी-देवताओं की पूजा नहीं होती, बल्कि माँ धरती के गर्भ से निकल रहे ९(नौ) ज्वलाओं की पूजा की जाती है| इन नौ ज्योति रूप मे विराजे माँ के अलग-अलग नौ रूपों की पूजा की जाती है |
ये नौ ज्योति नौ अलग-अलग जगह से निकलती है| यह ज्योतियाँ कभी कम कभी अधिक के रूप में भी रहती हैं! इन ज्योतियों के पवित्र नाम व् दर्शन इस प्रकार हैं:
१. चाँदी के आले में सुशोभित है मुख्य ज्योति जिनका नाम महाकाली हैं जो मुक्ति देने वाली हैं!
२. इसके नीचे की ज्योति का नाम माँ ‘अन्न पूर्णा ‘ हैं जो भंडार भरने वाली हैं!
३. तीसरी ज्योति शत्रुओं का विनाश करने वाली माँ चंडी की हैं !
४. समस्त व्याधियों का नाश करने वाली चतुर्थ ज्योति हिंगलाज भवानी की हैं!
५. पंचम ज्योति माँ विन्ध्य्वासिनी हैं , जो शोक से छुटकारा देने वाली हैं!
६. छठी ज्योति माँ महालक्ष्मी की हैं जो धन देने वाली हैं ! यह कुण्ड में विराजमान रहती हैं!
७. सप्तमी ज्योति विधया देने वाली माँ शारद की हैं जो कुण्ड में सुशोभित हैं!
८. अष्टमी ज्योति संतान सुख देने वाली अम्बिका माई की ज्योति हैं जो कुण्ड में विराजमान हैं !
९. नवम ज्योति अंजना माता की हाँ जो यहीं कुण्ड में विराजमान हैं ! यह भक्तों को आयु व् सुख
प्रदान करती हैं !
पौराणिक कथाएँ:
इस मंदिर के साक्षात होने के प्रमाण की कहानी सम्राट अकबर और ध्यानु भगत की कहानी है जो सच्ची है | जब अकबर का .शासन भारत पर था उन्हीं दीनो की बात है|नादौन ग्राम (जो हिमाचल प्रदेश मे है) निवासी माँ का भक्त धयानू भगत हजार यात्रियों के साथ माता के दर्शन के लिए जा रहा था ।
इतना बड़ा दल को देखकर बादशाह के सिपाहियों ने उन सब को चांदनी चौक (दिल्ली) मे ही उन्हें रोक लिया और अकबर के दरबार में ले गये और उन सभी को पेश किया ।
बादशाह अकबर ने पूछा की तुम सब कहाँ जा रहे हो तो ध्यानु भगत ने उत्तर दिया की वे लोग माँ ज्वाला के दर्शन के लिए जा रहे हैं, जहाँ पे माँ की ज्योति खुद ही जलती हैं और वो हमारे सारे दुखों को ख़त्म करती हैं |
इसके बाद अकबर ने ध्यानु भगत से कहा की मे तुम्हारे अश्व के शीश को काट देता हूँ अगर तुम्हारे अश्व के शीश अगर पुनः जुड़ गये तो मे मान लूँगा| इस पर ध्यानु भगत बोला मुझे आप १ महीने का समय दिजये और तबतक इस अश्व के शीश और उसके शरीर को सुरक्षित रखें|
तद्पस्यात वो मा के दर्शन के लिए निकल गया और माँ के पास जा कर विनती की, ” है माँ आज बादशाह मेरे भक्ति की परीक्षा ले रहे हैं कृपया आप अश्व के शीश को पुनः ज़ोर दे|” इस पर माँ ने अश्व को फिर से जीवित कर दिया|
इस बात से हेरान होकर अकबर ने माँ के दर्शन के लिए निकल पड़ा | वहाँ पहुँच के उस के मन मे शंका हुआ तो उसने अपनी सेना से मंदिर पूरे मंदिर में पानी डलवाया, लेकिन माता की ज्वाला बुझी नहीं। फिर जाकर उसे माँ की महिमा का यकीन हुआ और उसने पचास किलो सोने का छतर चढ़ाया | लेकिन माँ ने उस छतर को स्वीकार नही किया |