जानिए क्यो यहाँ चूहो का जूठा प्रसाद खाते है लोग

bikaner mata

आज हम आपको ऐसे मंदिर के बारें मे ब्ताएँगे जहाँ चूहे ही चूहे रहते हैं| जहाँ आप जाने के बाद चूहे को देखकरआश्चर्य हो जाएँगे| अगर आप अपने घर मे चूहे को देखते है तो आप उन्हे भगाने के बारे मे सोचने लगेंगे की किस प्रकार उन्हे घर से निकाला जाए| जी हाँ राजस्थान के बीकानेर से लगभग ३० किलो मीटर दूर देशनोक मे स्थित माँ करणीका मंदिर जहाँ चूहे ही चूहे रहते हैं| वहाँ माँ करणीको चूहे की माता कहा जाता है|

हमारे देश मे चूहे को फ्लेग जैसे बीमारी का कारण माना जाता है वही इस मंदिर मे लोग चूहे के झूठे प्रसाद खाना खाते है| आज तक किसी को ना ही कोई फ्लेग जैसी बीमारी हुई और ना ही कोई भक्त बीमार हुआ| इस मंदिर को मूषक मंदिर और चूहों के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है| इस मंदिर मे लगभग पूरे २०००० चूहे रहते हैं|

माँ करणी को माना जाता है माँ जगदम्बा का अवतार:

माँ करणी का जन्म सन् 1387 में एक चारण परिवार में हुआ था। उन्हे बचपन मे लोग उन्हें रिघुबाई के नाम से संबोधित करते थे| उनकी शादी साठिका गाँव के किपोजी चारण से हुई| लेकिन कुछ समय बाद उन्हें अपना मन इस संसारिक जीवन से उबने लगा, जिसके बाद उन्होने अपनी बहन गुलाब की शादी अपने पति से कराकर उन्होने अपने आप को माँ की भक्ति और लोगो की सेवा मे लगा दिया| उन्होने बहुत सारे चमत्कार किए जिन कारण से लोग उन्हे माता कह के संबोधित करने लगे|

चमत्कार माँ करणी के:

एक बार माता करणी के पिता जी को जंगल मे एक सर्प ने काट लिया जिस कारण उनके पिता जी गिर पड़े |फिर उन्होने अपने हाथ को अपने पिताजी के सर्प कटे हुए स्थान पे रखा और सारे विष खुद ही ख़त्म हो गये| माता के चमत्कार यहीं नही ख़त्म हुए| एक समय की बात है एक बार माता के सोतेले पुत्र लक्ष्मण की मृत्यु सरोवर मे पानी पीते वक्त डूबकर हो गया| जब माता को इस बारे मे पता चला तो उन्होने यम को बुलाकर अपने पुत्र के प्राण वापस करने की विनती की| तो यम ने उन्हे चूहे के रूप मे जीवन दान दिया| कहा जाता है की इसलिए चूहे को माता के पुत्र के नाम से संबोधित किया गया |

लेकिन बीकानेर के लोकगीतों मे कहा गया है की एक बार २०००० सानिकों की एक टुकरी ने देशनोक पर आक्रमण किया लेकिन माता ने अपने प्रताप से उन्हे चूहे मे रूपांतरित कर दिया और अपने सेवा मे लगा लिया | वर्तमान में आज जहाँ मंदिर स्थित है वहां पर एक गुफा में करणी माता अपनी इष्ट देवी की पूजा करती थी। यह गुफा आज भी मंदिर परिसर में स्थित है। कहते है करणीमाता 151 वर्ष तक जिंदा रहकर लोगो की सेवा किं तत पाश्चयात 23 मार्च 1538 को ज्योतिर्लिन हुई|

चूहे की धमाचोकरी:

इस मंदिर मे चूहों का एकछत्र राज चलता है| इस मंदिर मे आपको अपने पेर घसीटते हुए आना और जाना पड़ेगा| और अगर आपने अपना पेर उठाया तो आप किसी चूहे को घायल कर सकते हैं और पाप के भागीदार हो सकते हैं| इस मंदिर मे करीब बीस हज़ार काले चूहे और कुछ सफेद चूहे हैं| अगर आपको सफेद चूहे के दर्शन हुए तो आपके सारे मनोकामनाए ज़रूर पूरी होंगी|

चूहे की धर्म नीति:

इन चूहे की कुछ खास विशेषता है| सुबह के 5 बजे की आरती और शाम के 7 बजे की संध्या आरती के समय सारे के सारे चूहे अपने-अपने बिल से बाहर निकल के माँ की आरती मे शामिल होते हैं | आरती के बाद इन चूहे को प्रसाद दिया जाता है फिर ये प्रसाद लोगो को दिया जाता है| चील, गिद्ध और दूसरे सभी जानवरो से इन चूहों की रक्षा के लिए मंदिर में खुले स्थानो पर बारीक जाली लगाई गयी हैं|