उज्जैन के भगवान काल भैरव के मदिरापान का रहस्य

उज्जैन महाकाल और भगवान भैरव की नगरी | आज हम आपको भैरव से संम्बंधित रोचक बातें बताते हैं | उज्जैन मे स्थापित विश्व प्रसिद्ध श्री कल भैरव मंदिर है | जैसा की हमे पता है, कि काल भैरव के प्रत्येक मंदिर में भगवान भैरव को मदिरा प्रसाद के रूप में चढ़ाई जाती है ।

लेकिन उज्जैन के प्राचीन काल भैरव मंदिर मे भगवान काल भैरव साक्षात मदिरा का सेवन करते हैं | यहाँ स्थित श्री काल भैरव के मुंह के पास मदिरा का पात्र रखने से मदिरा समाप्त हो जाती है |

पौराणिक कथाएँ:

स्कंद पुराण के अनुसार चार वेदो के रचियता भगवान ब्रह्मा ने जब पांचवें वेद की रचना का फेसला लिया तो सारे देवी-देवता ने भगवान शिव के पास गये और उन्होने प्रार्थना की | लेकिन भगवान ब्रह्मा ने अपनी हट का त्याग नही किया जिससे भगवान शिव बहुत क्रोधित हुए, जिससे उनका त्रिनेत्र खुल गया | इस त्रिनेत्र से श्री काल भैरव का जन्म हुआ | क्रोध से उत्पन्न कल भैरव भी क्रोध मे थे और उन्होने क्रोध मे आकर ब्रह्मा जी का पांचवां सिर काट दिया |

भगवान ब्रह्मा के सिर के काटने के कारण उनके ऊपर ब्रह्म हत्या का पाप लग गया,  जिनको ख़त्म करने और उस पाप से मुक्त होने के लिए वो भगवान विष्णु के पास गये और उन्होने प्राथना की और निवेदन किया की उन्हें पाप से मुक्त होने का मार्ग बताएँ | फिर भगवान विष्णु ने उन्हें धरती पे विचरण करने को कहा और जहाँ पे कालाग्नि मिले वहाँ अपने दोष का निवारण करने को कहा | भगवान श्री वेरव ने भगवान ब्रह्मा का कटा हुआ शीश लेकर धरती पर आए और विचरण करने लगे | विचरण करते हुए अवंतिका अर्थात उज्जैन के काला अग्नि क्षिप्रा घाट पर आकर उन्होनें अपने आप को पाप मुक्त और अपने मन को शांत किया |

पूजा की विशेष तिथियां:

वैसे तो शास्त्र के अनुसार श्री वेरव की पूजा बारह महीने की जाती है,  लेकिन कृष्ण पक्ष की अष्टमी, आषाढ़ मास की पूर्णिमा (गुरु पूर्णिमा) और रविवार के दिन विशेष रूप से भैरव की पूजा की जाती है | भगवान वेरव के दर्शन के लिए बारह महीने देश-विदेश से लोग आते हैं |

रहस्यता:

श्री काल भैरव का जन्म क्रोध एवं अग्नि से उत्पन्न हुआ है  इसलिए वे महाक्रोधी देवता कहलाते हैं  किन्तु वे परम दयालु और क्षण में प्रसन्न होकर कृपा करने वाले करूणानिधि भी हैं । कहा जाता है,  की उनके क्रोध को शांत करने के लिए उन्हें मदिरा चढ़ाया जाता है |  देश-विदेश से आए श्रद्धालु प्रतिमा को साक्षात मदिरा पान करते देखने आते हैं और देख कर अच्म्भित हो जाते हैं | मदिरा भगवान के द्वारा कैसे पी ली जाती है,  इस रहस्य का आज तक कोई भी पता नही कर सका |

ब्रिटिश साम्राज्य  मे अंग्रेजों ने प्रतिमा के चारों और बहुत लंबी खुदाई कराई लेकिन उन्हें पता नही चल पाया की ये मदिरा कहाँ जाती है | उसके बाद नासा ने भी आकर अपने सारे प्रयतनों के द्वारा पता लगाने की कोशिश की लेकिन उन्हें भी निराश ही होना पड़ा |