आज सोमवार है, इसलिए आज हम विल्व पत्र के बारे में जानेंगे। बिल्व पत्र को शिवद्रुम के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस पेड़ का बहुत महत्वपूर्ण और पवित्र माना गया है। यह पेड़ सम्पन्नता का प्रतिक है और समृद्धि देने वाला है। कहा जाता है की जिस घर में इसका पेड़ होता है उस जगह कभी भी किसी चीज की कमी नहीं होती है।
बेल के पत्ते शंकर जी को बहुत प्रिय है इसलिए शिव पूजा के दौरान इसे उपयोग किया जाता है। बिल्व पत्र के तीन पत्ते त्रिनेत्र को बताते हैं। नारियल के अलावा इस बेल को भी श्री फल कहा गया है क्योंकि ये माँ लक्ष्मी का प्रिय फल है।
बेल वृक्ष की उत्पत्ति:
स्कंदपुराण के अनुसार एक समय देवी पार्वती ने अपनी ललाट से पसीने को पोछकर फेंका, तब उसकी कुछ बुँदे मंदार पर्वत पर गिरी, जिससे बेल वृक्ष की उत्पत्ति हुई। इस वृक्ष की जड़ों में गिरिजा, तने में माहेश्वरी, शाखाओं में दक्षयायनी, पत्तियों में माँ पार्वती, फूलों में माँ गौरी तथा फलों में माँ कात्यायनी का वास रहता है।
बिल्व पत्र के महत्त्व:
१) “अखंड बिल्व पत्रं नंदकेश्वर सिद्धर्थे लक्ष्मी। “ बिल्वाष्टक में उल्लेखित यह पद्द के अनुसार बिल्व अपने आप में लक्ष्मी सिद्ध है। इसकी विशेषता रुद्राक्ष के एक मुखी स्वरुप के बराबर है। इससे वास्तुदोष भी ख़त्म होता है और यदि इसे तिजोरी में रखकर नित्य दिन पूजा करने से व्यापार में वृद्धि होती है। रुके धन वापस आते हैं।
२) यदि हवन के दौरान बिल्व के फल से आहुति दी जाये तो माँ लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
३) माँ शारदा अर्थात माँ भगवती को बिल्व पत्र अर्पण करने से कई तरह की सिद्धियां प्राप्त होती है। किसी भी परिस्थिति में दुख नहीं होता है। कई जन्मों के पाप का नाश होता है।
ये समस्त जानकारियां शास्त्र के अनुसार है|
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