कल कैसे ओर किस मुहूर्त मे करें हनुमानजी की पूजा, की आपको मिले उनकी दिव्य शक्तियां?

Hanuman-ji-Puja

आज हम आपको हनुमान जयंती पे हनुमान जी की पूजा कैसे करनी चाहिए इसके बारे मे बताएँगे|हमारे शास्त्र के अनुसार हनुमान जयंती प्रत्येक वर्ष चैत्र वर्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है| इसलिए इस वर्ष हनुमान जी की जयंती 22 अप्रैल को मनाया जाने वाला हैं| चलिए सबसे पहले हम जानते हैं की कौन-कौन सा समय शुभ हैं 22 अप्रैल को हनुमान जी की पूजा करने के लिए|

 

शुभ मुहर्त:

सुबह- 5:50 बजे से 7:25 बजे तक

सुबह- 7:25 बजे से 9:00 बजे तक

सुबह- 9:00 बजे से 10:40 बजे तक

सुबह- 11:50 बजे से दोपहर 12:40 बजे तक

दोपहर- 12:20 बजे से 01:55 बजे तक

शाम- 5:00 बजे से 6:45 बजे तक
ये 6 शुभ मुहर्त है जिसमे हनुमान जी की पूजा करने से आपको हनुमान जी का आशीर्वाद मिलेगा| आब हम जाने पूजन करने की विधियाँ ताकि प्रभु हनुमान हम सब पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखें|

 

पूजन विधि:

प्रातः काल उठकर स्नान करके कंबल या ऊन का आसन ले के उस पर पूर्व दिशा की और मुख कर के बैठ जाएँ| उसके बाद जिस जगह पे हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित करनी हो, उस जगह पे जनगा जल का छिड़काव करें| फिर उस जगह पे हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित करें| तत्पश्चयात हाथों मे चावल वा फूल ले कर नीचे दिए गये मंत्र का बोलते हुए हनुमान जी का स्मरण करें:-

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं

दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यं।।

सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं

रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।

ऊं हनुमते नम: ध्यानार्थे पुष्पाणि सर्मपयामि।।
उसके पश्चयात हाथों मे लिए हुए चावल और फूल क हनुमान जी के चरणों मे अर्पित कर दें| उसके बाद उनका आवाहन करें| आवाहन करने के लिए हाथों मे फूल ले कर इस मंत्र का अनुसरण या उच्चारण करें| और उसे उनके चरणों मे अर्पण करें|

 

आवाहन मंत्र:

उद्यत्कोट्यर्कसंकाशं जगत्प्रक्षोभकारकम्।

श्रीरामड्घ्रिध्याननिष्ठं सुग्रीवप्रमुखार्चितम्।।

विन्नासयन्तं नादेन राक्षसान् मारुतिं भजेत्।।

ऊं हनुमते नम: आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि।।

 

आसन:

उसके बाद हनुमान जी को आसन अर्पित करें| आसन अर्पण करते वक्त इस मंत्र का ध्यान करें|

तप्तकांचनवर्णाभं मुक्तामणिविराजितम्।

अमलं कमलं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम्।।
आसन के लिए कमाल या गुलाब के फूल अर्पित करें| आसन को अर्पण करने के बाद मंत्र का ध्यान करते हुए किसी बर्तन या भूमि पर तीन बार जल छोड़ें हनुमान जी के सामने|
ऊं हनुमते नम:, पाद्यं समर्पयामि।।

अध्र्यं समर्पयामि। आचमनीयं समर्पयामि।।

 

स्नान विधि:

हनुमानजी की मूर्ति को गंगाजल से अथवा शुद्ध जल से स्नान करवाएं उसके बाद पंचामृत (घी, शहद, शक्कर, दूध व दही) से स्नान करवाएं। पुन: एक बार शुद्ध जल से स्नान करवाएं। अब मंत्र से हनुमानजी को वस्त्र अर्पण करें व वस्त्र के निमित्त मौली चढ़ाएं-

शीतवातोष्णसंत्राणं लज्जाया रक्षणं परम्।

देहालकरणं वस्त्रमत: शांति प्रयच्छ मे।।

ऊं हनुमते नम:, वस्त्रोपवस्त्रं समर्पयामि।
इसके बाद हनुमानजी को गंध, सिंदूर, कुमकुम, चावल, फूल व हार का अर्पण करें। तत्पश्चयात मंत्र के साथ हनुमानजी को धूप-दीप दिखाएं-

साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया।

दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम्।।

भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने।।

त्राहि मां निरयाद् घोराद् दीपज्योतिर्नमोस्तु ते।।

ऊं हनुमते नम:, दीपं दर्शयामि।।

 

नवेद्द्यम का भोग:

इसके बाद केले के पत्ते पर या किसी कटोरी में पान के पत्ते के ऊपर नवेद्द्यम का भोग लगाएँ उसके बाद ऋतुफल अर्पित करें। (प्रसाद में चूरमा, भीगे हुए चने या गुड़ चढ़ाना उत्तम माना जाता है।) अब लौंग- इलाइची युक्त पान चढ़ाएं।

पूजा का पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए इस मंत्र को बोलते हुए हनुमानजी को दक्षिणा अर्पित करें-

ऊं हिरण्यगर्भगर्भस्थं देवबीजं विभावसों:।

अनन्तपुण्यफलदमत: शांति प्रयच्छ मे।।

ऊं हनुमते नम:, पूजा साफल्यार्थं द्रव्य दक्षिणां समर्पयामि।।

 

आरती:

इसके बाद एक थाली में कर्पूर एवं घी का दीपक जलाकर हनुमानजी की आरती करें। इस प्रकार पूजन करने से हनुमानजी अपने भक्तों पे अति प्रसन्न होते हैं तथा साधक की हर मनोकामना पूरी करते हैं।
चलिए अब हम जानते हैं किस प्रकार और कौन-कौन सी शक्तियाँ हनुमान जी को मिली|

हमारे शास्त्रों के अनुसार, जब हनुमान अपने बाल्यकाल मे सूर्यदेव को फल समझकर खाने को उड़े तो घबराकर देवराज इंद्र ने हनुमानजी पर वज्र से प्रहार किया। वज्र के प्रहार से हनुमान निश्तेज हो गए। यह देखकर वायुदेव बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने पूरे संसार से वायु को अपने अंदर वापस खींच लिया| जिस कारण वश संसार में हाहाकार मच गया। तब परमपिता ब्रह्मा ने हनुमान को स्पर्श कर पुन: चैतन्य किया। फिर धीरे-धीरे उस समय सभी देवताओं ने हनुमानजी को अलग-अलग वरदान दिए। जिस कारण वश हनुमानजी परम शक्तिशाली बन गए।

 

हनुमानजी के वरदान

1. भगवान सूर्य ने हनुमानजी को वरदान स्वरूप अपने तेज का सौवां भाग दिए और कहा कि जब इसमें शास्त्र अध्ययन करने की शक्ति आ जाएगी, तब मैं ही इसे शास्त्रों का ज्ञान दूंगा, जिससे यह अच्छा वक्ता होगा और शास्त्रज्ञान में इसकी समानता करने वाला कोई नहीं होगा।

2. धर्मराज यम ने हनुमानजी को वरदान के रूप मे अपने दण्ड से अवध्य और निरोग रहने का वरदान दिया|

3. यक्षराज कुबेर ने हनुमान जी को युद्ध में कभी विषाद ना होने का वरदान दिए तथा उन्होने ये भी वरदान दिया की उनकी गदा उनकी सुरक्षा हमेशा करेगी|

4. भगवान शंकर वरदान स्वरूप मे उनके अस्त्र-शस्त्र से अवध्य रहेने का आशीर्वाद दिया हनुमान जी को|

5. देवशिल्पी विश्वकर्मा ने वरदान दिया कि उनके द्वारा बनाए गये जितने भी शस्त्र हैं, उनसे हनुमान अवध्य रहेंगे और चिंरजीवी रहेंगे|

6. देवराज इंद्र ने भी हनुमानजी को अपने वज्र से अवध्य रहने का वरदान दिया|

7. जलदेवता वरुण ने हनुमान जी को उनके पाश और जल से मृत्यु ना होने का वरदान दिया अगर उनकी उम्र दस लाख वर्ष की भी क्यों ना हो जाएँ|

8. परमपिता ब्रह्मा ने हनुमानजी को वरदान स्वरूप दीर्घायु, महात्मा होने का वरदान दिया| सभी प्रकार के ब्रह्दण्डों से अवध्य रहने का वरदान दिया| युद्ध में कोई भी इसे पराजित नही कर पाएगा। अपने इच्छा अनुसार रूप धारण कर सकेगा, जहां चाहेगा जा सकेगा। इसकी गति इसकी इच्छा के अनुसार तीव्र या मंद हो सकेगी| ये सारे वरदान ब्रह्मा जी ने उन्हें दिया|