कामधेनु गाय की पूजा के आश्चर्यजनक लाभ

गाय हिंदू धर्म मे एक पवित्र पशु माना जाता है और उन्हें पूजा भी जाता है| गाय को हिंदू मान्यताओं के अनुसार माँ के नाम से पुकारा भी जाता है क्योंकि गाय से मिलने वाले दूध को अमृत के समान माना जाता है| इसलिए गाय को मनुष्य का पालन हार कहा गया है| लेकिन क्या आपको ये पता है की ये रिवाज आज के जमाने का नही है| ये तो दशकों पूर्व का रिवाज है| तो चलये आज इसकी पीछे छुपे इतिहास को जानते हैं क्यों और किस लिए गाय को माँ नाम से पुकारा जाता है और उन्हें पूजा जाता है|

शास्त्रों के अनुसार बहुत युगों पूर्व से ही गाय को पूजा जाता है | हिंदू धर्म मे या इसके मान्यताओं के अनुसार हमने हमेशा ही कामधेनु गाय के बारे मे सुना है और ये भी सुना है की कामधेनु के पास दैवीय शक्तियां थी, जिसके द्वारा वो हमेशा से अपने भक्तों के मनोकामनाओं को पूरी करती थी| कहा जाता है की कामधेनु गाय जिनके पास रहती थी उनके पास हमेशा ही सुख-शांति व्याप्त रहती थी और अगर कोई भी इस गाय का दर्शन कर लेता था उसके सारे समस्या दूर हो जाती थी|

इसी कारण वश कामधेनु को माँ के नाम से पुकारा जाता था, जो हमेशा से अपने बच्चों या भक्तों का पालन-पोषण करती थी और उनकी सारी इच्छा पूरी करती थी| लेकिन क्या आपको पता है की कामधेनु की उत्पत्ति कहाँ से हुई है?

पौराणिक कथा:

जब देवताओं और असूरों ने अमृत पाने के लिए जब समुद्र का मंथन शुरू किया तो उस समुद्र मंथन से देव और असुर को बहुत सारे मूल्यवान चीज़ें मिली जैसे: मूल्यवान रत्न, अप्सराएँ, शंख, विष, अमृत, चंद्रमा, पवित्र वृक्ष, कुछ अन्य देवी-देवता, कामधेनु गाय इत्यादि चीज़ें मिली|

कामधेनु से संबंधित बहुत सारे कहानियाँ हैं |

प्रथम कथा :

कहा जाता है की एक दिन कश्यप ने वरुण देव से कामधेनु गाय को माँगी थी, लेकिन उन्होने बाद मे वापस नही किया जिस कारण-वश उन्हें श्राप मिला जिस कारण-वश कश्यप द्वापर्युग मे ग्वाल के रूप मे जन्म लिया|

दूसरी कथा :

एक बार सहस्त्रार्जुन अपनी पूरी सेना के साथ एक बार जमदग्नि ऋषि(भगवान परशुराम के पिता) के आश्रम मे विश्राम करने के लिए आए और जब वो आएँ तब महर्षि के पास कामधेनु गाय भी थी जो उन्हें देवराज इंद्र से प्राप्त हुई थी| सहस्त्रार्जुन को कामधेनु गाय के बारे मे कुछ जानकारी नही थी, लेकिन जब उन्होने देखा की आश्रम मे ना ही अधिक सुविधाएँ हैं और ना ही अधिक सेवक लेकिन एक गाय ने एक बार मे उनके और उनके सेना के लिए पलभर मे भोजन का प्रबंध कर दिया| ये देखकर वे आश्चर्यचकित हो गये | ये देखकर राजा के मन मे ईर्ष्या उत्पन्न हुई और उसने महर्षि से कामधेनु की माँग की लेकिन जब उन्होने गाय को देने से मना कर दिया | ना सुनते ही राजा बहुत गुस्सा हो गया और वो जबरन कामधेनु को ले जाने लगा, लेकिन जैसे ही राजा ने कामधेनु को ले जाने के लिए पकड़ा तो गाय स्वर्ग की और चल दी| कामधेनु को जाते ही पूरा आश्रम तहस-नहस हो गया| जब कुछ दिनों के बाद परशुराम आए तो ये देखकर दंग हो गये और उन्होने इसके बारे मे पता लगाया| फिर उनकी माता ने सारी बातें बताई जिससे क्रोधित होके परशुराम ने राजा से बदला लेने की ठानी और वो अपने परशु के साथ सहस्त्रार्जुन के नगर महिष्मतिपुरी पहुचें और उन्होने राजा के सहस्त्र भुजाओं को काटकर उसका वध कर दिया | जब वो राजा को पराजित और वध करने के बाद वो अपने माता-पिता के पास पहुँचे और तब उनके पिता ने उन्हें तीर्थ-यात्रा करने का आदेश दिया और कहा की ऐसा करने से राजा के वध का पाप ख़त्म होगा|