क्यों खोला शिव ने तीसरा नेत्र, रहस्यमय है उबलते पानी का कुंड

हमारे हिन्दू संस्कृति में कई ऐसे मंदिर और जगह है जो आज तक रहस्य ही बना हुआ है। लेकिन शास्त्रों में उस रहस्य से सम्बंधित कहानियां है जो कई सदी पहले की बातें को दर्शाता है। आज हम ऐसे ही एक रहस्यमय शिव मंदिर की कहानी के बारे में जानेंगे जो हिमाचल प्रदेश के मणिकर्ण को लेकर मशहूर है। शास्त्रों के अनुसार कहा जाता है की इस मंदिर के स्थान पे महादेव ने अपनी तीसरे नेत्र को खोला था।

 

तीसरे नेत्र खोलने का कारण:

शास्त्रों के अनुसार एक समय भगवान शिव और माता पार्वती नदी में क्रीड़ा कर रहे थे तो उस वक्त माता पार्वती के कन के आभूषण की मणि पानी में गिर गई और वो सीधे पाताल लोक में चली गई। इसके बाद शिव जी ने अपने गणों को उसे ढूंढ कर लेन के लिए भेजा। लेकिन गणों के द्वारा नहीं खोज पाने के कारण गुस्से में आ के उन्होंने अपने तीसरे नेत्र को खोला जिससे उनके नेत्रों से नैना देवी प्रकट हुई। और उन्होंने पाताल लोक में जा के शेष नाग से वो मणि लौटाने के लिए कहा तो शेषनाग ने वो कई सरे मणि भगवान शिव को भेंट की। उसके उपरांत भगवान शिव ने माँ पार्वती को अपनी मणि ढूंढेने को कहा और माँ पार्वती ने अपनी मणि को ढूंढ कर भकी सारी मणि को पत्थर का रूप देके उसी नदी में डाल दिया। कहा जाता है की वो मणि आज भी उस नदी में उपस्थित है। नैना देवी के उस जगह प्रकट होने के कारण उस जगह को नैना देवी की जन्म भूमि के नाम से मशहूर है।

 

गर्म पानी का स्त्रोत:

इसी मंदिर के पास एक गर्म पानी का स्त्रोत है जो हमेशा उबलता रहता है। यह गर्म पानी का स्त्रोत शीतल जल वाली पार्वती नदी से सिर्फ कुछ ही दुरी में उपस्थित है। लेकिन फिर भी इस कुंड में हमेशा गर्म पानी कहा से आता है ये आज तक किसी भी इतिहासकारों , वैज्ञानिकों के लिए रहस्य ही बना हुआ है। ये इतना गर्म है की इसमें हाथ तक भी नहीं डाला जा सकता है। शिव मंदिर के पास ही गुरुद्वारा है जिसका प्रसाद बनाने के लिए इस स्त्रोत में चावल को पकाया जाता है। कहा जाता है की इस स्त्रोत में चावल कुछ ही मिनटों में पक जाता है। इस स्त्रोत के जल को पार्वती नदी के जल में मिला के इसे नहाने योग्य बनाया जाता है।

 

नदी के दूसरी और है गुरुद्वारा :

पार्वती नदी के एक ओर जहाँ शिव मंदिर है तो उसी के दूसरी ओर गुरुद्वारा भी स्थित है जो इसे ओर भी सुन्दर दृश्य बनाता है। यहाँ आने वाले भक्त चाहे वो हिन्दू हो या सिख दोनों ही जगहों के दर्शन से लाभ प्राप्त करते हैं। शास्त्रों में उल्लेखित है की ये जगह श्री राम को बहुत ही प्रिय थी। वे कई बार इस जगह पे आ के भगवान शिव के आराधना और तपस्या किया। आज श्री राम के तपस्या स्थली पे एक सुन्दर सा श्री रघु नाथ मंदिर उपस्थित है।

 

कहाँ है:

हिमाचल प्रदेश के कुल्लू से 45 किलो मीटर दूर एक जगह है मणिकर्ण। इस जगह पे हिन्दुत्त्व और सिख दोनों के ऐतिहासिक स्थल है। इस जगह पे पार्वती नदी बहती है।

 

कब और कैसे जाएँ:

मणिकर्ण जाना है तो सबसे अच्छा और उत्तम समय अप्रैल से अक्टूबर सबसे शानदार समय है।

यहाँ जाने के लिए हम हवाई जहाज, ट्रैन और रोड का भी सहर ले सकते है।

 

हवाई जहाज के द्वारा:

इस ऐतिहासिक जगह से केवल 34 किलो मीटर दूर एक हवाई अड्डा है जिसका नाम भुंतर हवाई अड्डा है। इस हवाई अड्डे तक पहुँच के हम सड़क के द्वारा जा सकते हैं।

 

ट्रेन के द्वारा:

मणिकर्ण से सबसे पास एक रेलवे स्टेशन है जिसका नाम जोगिन्द्रनगर है। यहाँ से मणिकर्ण की दुरी 147 किलो मीटर है।

 

सड़क के द्वारा:

मणिकर्ण से 41 किलो मीटर दूर कुल्लू है। कुल्लू से सड़क मार्ग से हम मणिकर्ण आ सकते हैं।