महाभारत प्रण और संकल्प की कहानी थी| इस मे प्रत्येक लोग अपने ‘शपथ’, ‘प्रतिबद्धता’ और ‘वादा’ रखने के लिए किसी भी स्तर तक जा सकते थे| आज हम आपको बताएँगे की किस प्रकार और क्यों अर्जुन ने अपने बड़े भाई युधिष्ठिर को मारने की कोशिश की|
भीष्म पितहमह: के घायल होने के बाद कर्ण को सेनापति बनाया गया और कर्ण ने दिन प्रतिदिन पांडवों के सेना का वध करने लगा| अपने सेना को मरते देख युधिष्ठिर ने गुस्से मे आकर कर्ण के सेना का विनाश करने लगें| इससे कर्ण और युधिष्ठिर के बीच युध शुरू हो गया| इस युध्ध मे कर्ण ने युधिष्ठिर को पूरी तरीके से घायल कर दिया क्योंकि उसने माता कुंती को वचन दिया था की अर्जुन को छोडकर बाकी किसी का वध नही करेगा|
नकुल और सहदेव ने मिल कर युधिष्ठिर को छावनी(जहाँ घायल लोगो के उपचार किया जाता है) ले गये और उनका उपचार शुरू किया| जब ये बात भीम और अर्जुन को पता चली तो भीम ने अर्जुन को कहा की वो जा के बड़े भ्राता के स्वास्थ का जयजा लें की वो अब कैसे हैं| अर्जुन तुरंत छावनी चले आए और उन्होने अपने बड़े भ्राता के स्वास्थ के बड़े मे पूछा, जबकि युधिष्ठिर ये आस लगाए बैठे थे की अर्जुन उनके अपमान का बदला ले कर आया होगा लेकिन जब उन्हे पता चला की अर्जुन ने ऐसा कुछ नही किया तो युधिष्ठिर अपने आपे से बाहर हो गये और उन्होने गुस्से मे आकर अर्जुन से बोले की जब तुमने अपने बड़े भ्राता के अपमान का बदला नही लिया तो तुम किस प्रकार के योध्धा हो| क्या तुम अपने हार चुके भ्राता के शीश को और झुकना चाहते हो? जब तुमने कर्ण का वध नही किया तो इस गांदिव को छोड़ दो इसकी कोई ज़रूरत नही है तुम्हें| अपने गांदिव के अपमान को सुन कर अर्जुन ने तुरंत अपने गांदिव से अपने बड़े भ्राता का वध करने के लिए तेयार हो गया| अर्जुन ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उसने प्रण लिया था की कोई भी चाहे वो देव हो या दानव या कोई उनके अपने अगर गांदिव के बारे मे कोई भी अपशब्द बोले या कोई अपमान करे तो वो उन्हें छोड़ेगा नही| इसी प्रण के कारण उसने अपने बड़े भ्राता को मरने की कोशिश की लेकिन तभी श्री कृष्णा ने आ के इस का कारण पूछा तो अर्जुन ने सारी बातें बताई, तब श्री कृष्णा ने कहा की अगर किसी धर्म पुरुष का अपमान किया जाए तो वो उसके मृत्यु करने के बराबर होती है| इस प्रकार तुम अपने गांदिव के अपमान का बदला भी ले सकोगे और अपने बड़े भ्राता के वध करने के पाप से भी मुक्त हो जाओगे|
फिर अर्जुन ने अपने बड़े भ्राता का खुब अपमान किया जिससे अपमानित होकर युधिष्ठिर ने अपने आप को खुद से मारने की कोशिश की| तब श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को समझाया की अगर उसने आत्महत्या की तो वो प्रकृति के विरुध एक पाप है और अधर्म भी इसलिए अगर अपने आत्महत्या की तो आप अधर्म और पाप के भागी बनेंगे|