जानिए क्या आपकी कुंडली में भी है विष योग? क्या है इसके दुष्परिणाम एवं उपाए?

Vish-Yog

आप सब लोग भली-भाँति यह बात जानते हैं कि प्रत्येक जातक की जन्म कुंडली में यहाँ कुछ शुभ योगों का निर्माण होता है तो वहीं कुछ अषुभ योगों का भी निर्माण होता है जो ग्रहों की चाल से समय-समय पर जातक को शुभ एवं अषुभ फल प्रदान करते हैं| शनि ग्रह धीमी गति, लंगड़ापन, आयु शूद्रत्व, सेवक, चाकरी, पुराने घर, खपरैल, बंधन, कारावास, जीर्ण-शीर्ण अवस्था आदि का कारक ग्रह है जबकि चंद्रमा माता, स्त्री, तरल पदार्थ, सुख, सुख के साथ, कोमलता, मोती, मान-सम्मान, यश आदि का कारकत्व रखता है।

 

शनि और चंद्रमा का संयोग जातक के लिए बेहद कष्टकारी माना जाता है। शनि अपनी धीमी प्रकृति के लिए बदनाम है और चंद्र अपनी द्रुत गति के लिए विख्यात। किंतु शनि क्षमताशील होने की वजह अक्सर ही चंद्रमा को प्रताड़ित करता है। यदि चंद्र और शनि की युति कुंडली के किसी भी भाव में हो, तो ऐसे में उनकी आपस में दशा-अंतर्दशा के दौरान विकट फल मिलने की संभावना भी बलवती होती है।शनि और चंद्र की युति से विष योग नामक दुर्लभ अशुभ योग की सृष्टि होती है।
आइए देखते हैं कि विष योग किन हालातों में निर्मित होता है –

  1. चन्द्रमा+शनि किसी भाव में युति संबंध बनाते हों  तो विषयोग का निर्माण होता है।
  2. जन्म कुण्डली के लग्न भाव में जब शनि की तीसरी सातवीं एवं 10वीं दृष्टि पड़ रही हो तो विष योग का निर्माण माना जाता है।
  3. जन्म कुण्डली में कर्क राषि में पुष्य नक्षत्र में शनि हो और चन्द्रमा मकर राषि में श्रवण नक्षत्र का हो और दोनों का स्थान परिवर्तन योग हो या शनि और चन्द्र विपरीत स्थिति में हो और दोनों की एक दूसरे पर दृष्टि हो तब विषयोग की स्थिति बनती है।
  4. सूर्य अष्टम भाव में, चन्द्र षष्टम भाव में और शनि 12 वे भाव में होने पर भी इस अषुभ योग का निर्माण होता है।
  5. जन्म कुण्डली में आठवे स्थान पर राहू हो और शनि, मेष, कर्क, सिंह, या वृष्चिक लग्न में हो तो विषयोग का निर्माण होता है।

जन्म कुण्डली में चन्द्र+शनि के युति से विषयोग बनता है जो अलग-अलग भावस्थ होने के कारण अलग-अलग ही अषुभ फल प्रदान करता है।ये विष योग जातक के जीवन में यथा नाम विषाक्तता घोलने में पूर्ण सक्षम है।जिस भी जातक की कुण्डली में विष योग का निर्माण होता है, उसे जीवन भर अशक्तता मानसिक बीमारी, भ्रम, रोग, बिगड़े दाम्पत्य आदि का सामना करना पड़ता है।

 

हां, जिस भी भाव में ऐसा विष योग निर्मित हो रहा हो, उस भाव अनुसार भी अशुभ फल की प्राप्ति होती है।जैसे यदि किसी जातक के लग्न चक्र में शनि+चंद्र के इस संयोग से विष योग बन रहा हो तो ऐसा जातक अपने को शारीरिक तौर पर बड़ा अक्षम महसूस करता है। उसे ताउम्र कंगाली और दरिद्रता का सामना भी करना पड़ता है।इस तरह लग्न में शनि-चंद्र के बैठ जाने से उसका प्रभाव सप्तम भाव पर बेहद नकारात्मक होता है, जिससे जातक का घरेलू दाम्पत्य जीवन बेहद बुरा बीतता है।लग्न शरीर का प्रतिनिधि है इसलिए इस पर चंद्र व शनि की युति बेहद नकारात्मक असर छोड़ती है। जातक जीवन भर रोग-व्याधि से पीड़ित रहता है।

 
इसी प्रकार से यदि द्वितीय भाव में शनि चंद्र का संयोग बने तो जातक पूरा जीवन भर ही धनाभाव से ग्रसित होता है। तृतीय भाव में यह युति जातक के पराक्रम को कम कर देती है। चतुर्थ भाव में सुख और मातृ सुख की भी न्यूनता तथा पंचम भाव में संतान व विवेक का नाश होता है। छठे भाव में ऐसी युति शत्रु-रोग तथा ऋण में बढ़ोत्तरी व सप्तम भाव में  शनि-चंद्र का संयोग पति-पत्नी के बीच सामंजस्य को खत्म करता है। अष्टम भाव में आयु नाश व नवम भाव में भाग्य हीन बनाता है। दशम भाव में ऐसी युति पिता से वैमनस्य तथा पद-प्रतिष्ठा में कमी एवं ग्यारहवें भाव में दुर्घटना अथवा चोटभय  की संभावना बढ़ाने के साथ लाभ में न्यूनता लाती है। जबकि बारहवें भाव में शनि चंद्र की युति व्यय को आय से बहुत अधिक बढ़ाकर जातक का जीवन कष्टमय बना देने में सक्षम है।

 
वैदिक ज्योतिष में चन्द्र और शनि का यह योग विष योग के नाम से प्रसिद्ध है। इस का कारण ज्योतिष में शनि ग्रह को जहर का कारक माना जाना है। चन्द्र पानी का कारक होता है और  जब उसमे शनि का जहर मिल जाता है तो वो जहरीला हो जाता है।चंद्र दूध का भी कारक होता है और जब दूध में जहर मिलता है तो सफेद से नीला हो जाता है और नीला रंग राहु का माना गया है और शनि का भी। इसलिए इन दोनों ग्रहों का ही पूर्ण प्रभाव जातक पर पड़ता है।जब भी चंद्र को शनि ग्रह का साथ मिलता है तो उस जातक में चंद्र की चंचलता समाप्त हो जाती है। उस पर शनि की उदासी हावी हो जाती है।और तब जातक मानसिक रूप से अशांत रहने लग जाता है।उसमे एक वैराग्य की भावना का भी जन्म होने लग जाता है। सभी जानते हैं की चंद्रमा ग्रह हमारी माता का भी कारक होता है और शनि का प्रभाव जातक की माता को भी स्वास्थ्य से सम्बंधित समस्या प्रदान करता है।

 
यदि आपने कभी ध्यान दिया होगा तो अमावस्या की काली रात जो की शनि की होती है उसमे चन्द्र नही निकलता है । शनि के अंधेरे में चंद्र गुम हो जाता है। यानी जब शनि का पूर्ण अशुभ प्रभाव चन्द्र पर हो तो जातक को चन्द्र से संबंधित समस्यायों का सामना करना पड़ जाता है। लाल किताब में भी चंद्र को धन और शनि को खजांची कहा गया है और जब इन दोनों का साथ हो तो जातक के धन की रखवाली जहरीला सांप करता है। यानी जातक के पास धन हो तो भी वो उसका प्रयोग नही कर सकता यानी धन की थैली पर सांप कुण्डली मार कर बैठ जाता है।
विष योग से डरने की जरूरत नही है।ज्योतिष में यदि कोई कुयोग भी है तो उसका निवारण या उपाय भी है। आप जानते है कि शिव जी ने जब विष को पीया था और संसार को बचाया था। यदि आप भगवान शिव की शरण में जाते है तो वे आपके ऊपर इस योग का वे कोई दुष्प्रभाव नही पड़ने देंगे। उपाय स्वरूप आप किसी भी शिव मंदिरमें शिवलिंग को नित्य जल अर्पित करें। यदि संभव हो तो गन्ने का रस शिवलिंग पर चढ़ाये । यदि ये भी सम्भव न हो तो शिवलिंग पर बर्फ ही चढ़ानी चाहिए।

 

शास्त्रों के अनुसार यदि उपाय किए जाये तो इस ‘विष योग’ के अषुभ फलों को कम किया जा सकता है।

  1. पीपल के पेड़ के ठीक नीचे एक पानी वाला नारियल सिर से सात बार उतार कर फोड़ दें और नारियल को प्रसाद के रूप में बॉट दें।
  2. शनिवार के दिन या शनि अमावस्या के दिन संध्या काल सूर्यास्त के पश्चात् श्री शनि देव की प्रतिमा पर या शिला पर तेल चढ़ाए, एक दीपक सरसो के तेल को जलाए दीपक में थोड़ा काला तिल एवं थोड़ा काला उड़द डाल दें। इसके पश्चात् 10 आक के पत्ते ले और काजल पर थोड़ी सरसो का तेल मिला कर स्याही बना ले, और लोहे की कील के माध्यम से प्रत्येक पत्ते में नीचे लिखे मंत्र को लिखे उदाहरण – जैसे 1. ऊॅ, 2. शं, 3. श, 4. नै, 5. श् (आधा श् शंकरवाला) 6. च, 7. रा, 8. यै, 9. न, 10. मः इस प्रकार 10 पत्तो में 10 अक्षर हो जाते है,फिर इन पत्तो को काले धागे में माला का रूप देकर,  शनि देव की प्रतिमा या षिला में चढ़ाये।तब  इस क्रिया को करते समय मन ही मन शनि मंत्र का जाप भी करते रहना चाहिए।
  3. गुड़, गुड़ की रेवड़ी, तिल के लड्डू किसी शनि मंदिर में प्रसाद चढ़ाये और प्रसाद को बॉट दे। तथा गाय, कुत्ते, एवं कौओ को भी खिलाए।
  4. शनि मंदिर में या हनुमान जी के मंदिर में घड़ा में पानी भरकर दान करें।
  5. पूर्णिमा के दिन शिव  मंदिर में रूद्राभिषेक करवाये।
  6. प्रतिदिन रूद्राक्ष की माला से कम से कम पाँच  माला महामृत्युन्जय मंत्र का जाप करे।इस क्रिया को शुक्ल पक्ष के प्रथम सोमवार से आरम्भ करें।
  7. माता एवं पिता अपने से उम्र में जो अधिक हो अर्थात पिता माता समान हो उनका चरण छूकर आर्षीवाद ले।
  8. शनिवार के दिन कुए में दूध चढ़ाये।
  9. श्री सुन्दर कांड का 49 पाठ करें। किसी हनुमान जी के मंदिर में या पूजा स्थान में शुद्ध घी का दीपक जलाकर पाठ करें, पाठ प्रारम्भ करने के पूर्व अपने गुरू एवं श्री हनुमान जी का आवाहन अवश्य करें।
  10. श्री हनुमान जी को शुद्ध घी एवं सिन्दूर का चोला चढ़ाये श्री हनुमान जी के दाहिने पैर का सिन्दूर अपने माथे में लगाए।

 

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