पितृ पक्ष श्राद्ध २०१६

हिन्दू धर्म में मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बेहद जरुरी माना जाता है | मान्यतानुसार अगर किसी मनुष्य का विधिपुर्वक श्राद्ध और तर्पण नही किया जाये तो उसे इस लोक से मुक्ति नही मिलती और वह भूत के रूप में इस संसार में ही रह जाता है | आइये आगे जानते है इस श्राद्ध के बारे में…  

पितृ पक्ष का महत्व – ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार देवताओ को खुश करने से पहले मनुष्य को अपने पितरो यानि पूर्वजों को प्रसन्न करना चाहिए | ज्योतिष के अनुसार भी पितृ दोष को सबसे जटिल कुंडली दोषों में से एक माना जाता है | पितरों की शांति के लिए हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण अमावश्या तक के काल को पितृ पक्ष श्राद्ध होते है | इस दौरान कुछ समय के लिए यमराज पितरों को आजाद कर देते है ताकि वह अपने परिजनों से श्राद्ध ग्रहण कर सकें |

पितृ पक्ष श्राद्ध २०१६ की तिथियां – तारीख १६ सितम्बर दिन शुक्रवार से तारीख ३० सितम्बर दिन शुक्रवार तक है |

श्राद्ध क्या है ? – ब्रह्म पुराण के अनुसार जो भी वस्तु  उचित काल या स्थान पर पितरों के नाम उचित विधि द्वारा ब्राह्मणों को श्रद्धापूर्वक दिया जाएँ वह श्राद्ध कहलाता है | श्राद्ध के माध्यम से पितरों को तृप्ति के लिए भोजन पहुँचाया जाता है | पिंड के रूप में पितरों को दिया गया भोजन श्राद्ध का अहम हिस्सा माना जाता है |

क्यों जरुरी है श्राद्ध देना ?- मान्यता है की अगर पितृ रुष्ट हो जाये तो मनुष्य को जीवन में कई समस्याओ का सामना करना पड़ता है | पितरों की अशांति के कारन धन हानि और संतान पक्ष से समस्याओ का भी सामना करना पड़ता है | संतानहीनता के मामलों में ज्योतिष पितृ दोष को अवश्य देखते है | ऐसे लोगों को पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध अवश्य करना चाहिए |

क्या दिया जाता है श्राद्ध में ?- श्राद्ध में तिल, चावल, जौ, आदि को अधिक महत्व दिया जाता है | साथ ही पुराणों में इस बात का जिक्र है कि श्राद्ध का अधिकार केवल योग्य ब्राह्मणो को है | श्राद्ध में तिल और कुशा का सर्वाधिक महत्व होता है | श्राद्ध में पितरों को अर्पित किये जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पित करना चाहिए | श्राद्ध का अधिकार पुत्र, भाई, पौत्र, प्रपौत्र समेत महिलाओ को भी होता है |

श्राद्ध में कौओं का महत्व- कौए को पितरों का रूप माना जाता है | मान्यता है कि श्राद्ध ग्रहण करने के लिए हमारे पितृ कौए का रूप धारण कर नियत तिथि पर दोपहर के समय हमारे घर में आते है | अगर उन्हें श्राद्ध नही मिलता है तो वह रुष्ट हो जाते है | इस कारन श्राद्ध का पहला अंश कौओं को दिया जाता है |

किस तारीख में करना चाहिए श्राद्ध  –

श्राद्ध दिवंगत परिजनों को उनकी मृत्यु कि तिथि पर श्रद्धापूर्वक याद किया जाना है | अगर किसी परिजन कि मृत्यु प्रतिप्रदा को हुई हो तो उनका श्राद्ध प्रतिप्रदा के ही दिन किया जाता है | इसी प्रकार अन्य दिनों में भी ऐसा ही किया जाता है इस विषय में कुछ विशेष मान्यता है वो निम्न है :

* पिता का श्राद्ध अष्टमी के दिन और माता का नवमी के दिन किया जाता है |

* जिन परिजनों कि अकाल मृत्यु हुई जो यानि दुर्घटना , आत्महत्या के कारन हुई हो उनका श्राद्ध चतुर्दशी इ दिन किया जाता है |

* साधु और सन्यासियों का श्राद्ध द्वादवंशी के दिन किया जाता है |

* जिन पितरों के मारने कि तिथि याद नही है, उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन किया जाता है | इस दिन को सर्व पितृ श्राद्ध कहा जाता है |

श्राद्ध विधि – गरुड़ पुराण के अनुसार पिंड दान या तर्पण हमेशा एक सुयोग्य पंडित द्वारा ही करना चाहिए | उचित मन्त्रों और योग्य ब्राह्मणों कि देखरेख में किया गया श्राद्ध सर्वात्तम होता है | इस दिन ब्राह्मणों और गरीबों को दान अवस्य कर्मा चाहिए |

पितरों का श्राद्ध मृत्यु तिथि पर ही करना चाहिए लेकिन अगर यह न मालूम हो तो आश्विन अमावस्या के दिन सर्वपितृ श्राद्ध योग होता है , इस दिन को शुभ मानकर पितरों का श्राद्ध अर्पित करना चाहियें |

पितरों का श्राद्ध अगर गया और गंगा नदी के किनारे किया जाये तो सर्वोत्म होता होता है | ऐसा न होने पर जातक घर पर भी श्राद्ध कर सकते है | पितृ पक्ष के दौरान जिस दिन पूर्वजों की मृत्यु की तिथि हो उस दिन व्रत काना चाहिए | इस दिन खीर और अन्य कई पकवान बनाने चाहिए |

दोपहर के समय पूजा शुरू करनी चाहिए | अग्नि कुंड में अग्नि जलाकर या उजला जलाकर हवन करना चाहिए | इसके बाद ब्राह्मण या योग्य पंडित की सहायता से मंत्रोंच्चारण करना चाहिए | पूजा के बाद जल तर्पण करना चाहिए , इसके बाद गाय, कालकूट, और कौए के उनका हिस्सा निकाल देना चाहिए |

इन्हें भोजन देते समय अपने पितरों का ध्यान करना चाहिए और मन ही मन उनसे निवेदन करना चाहिए की आओ आएं और यह श्राद्ध ग्रहण करें |

पशुओं को भोजन देने के बाद तिल, जौ, कुशा, तुलसी के पत्ते, मिठाई, और अन्य पकवान ब्राह्मण को परोस कर उन्हें भोजन करना चाहिए | भोजन करने के बाद उन्हें  दान अवस्य देना चाहियें |

मान्यता है की जो व्यक्ति नियमपूर्वक श्राद्ध करता है वह पितृ  ऋण से मुक्त हो जाता है | पितृ श्राद्ध पक्ष में किये गए दान और श्राद्ध से पितृ प्रसन्न होते है और जातक कप सैदेव स्वस्थ,समृद्ध, और खुशहाल होने का आशिर्वाद  देते है |

 

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