शाकंभरी नवरात्री आज से शुरू, 9 दिनों तक चलेगी तंत्र साधना

आज से हमारे देश में शाकंभरी नवरात्री की शुरुआत हो गई है। शास्त्रों के अनुसार ये नवरात्री तंत्र-मन्त्र के साधकों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। आइये आज हम शाकंभरी नवरात्री के बारे में जानते हैं की कब और कहाँ ये नवरात्री मनाई जाती है।

 

हमारे भारत वर्ष में वैसे तो चार नवरात्री मनाई जाती है। आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में शारदीय नवरात्रि, चैत्र शुक्ल पक्ष में चैत्र नवरात्रि, तृतीय और चतुर्थ नवरात्रि माघ और आषाढ़ माह में मनाई जाती है।   ये नवरात्री पौष मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से प्रारम्भ होता है जो की इसी मास के पूर्णिमा के दिन समाप्त होता है। नवरात्री के अंतिम दिन माँ शाकंभरी की जयंती मनाई जाती है। ये नवरात्री मुख्य रूप से राजस्थान, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और तमिल नाडु के कुछ हिस्से में मनाया जाता है।

 

माँ शाकंभरी का शक्तिपीठ :

भारत में माँ शाकंभरी के तीन शक्तिपीठ है।

१) राजस्थान के सीकर जिले में उदयपुर वाटी है उसी के पास सकराय माताजी के नाम से मंदिर स्थित है।

२) राजस्थान में ही सांभर जिले के पास शाकंभर नाम से स्थित है।

३) उत्तरप्रदेश के मेरठ के पास सहारनपुर में 40 किलो मीटर दुरी पर स्थित है।

 

स्वरुप माँ शाकंभरी का:

धर्म शास्त्रों के अनुसार माँ शाकंभरी देवी दुर्गा के सभी अवतारों में से एक अवतार है। दुर्गा सप्तशती में माँ शाकंभरी के रूप का वर्णन किया गया है:

शाकंभरी नीलवर्णानीलोत्पलविलोचना।

मुष्टिंशिलीमुखापूर्णकमलंकमलालया।।

तात्पर्य: देवी शाकंभरी के वर्ण नीला है, निल कमल के सट्टश ही इनके नेत्र है। ये कमल पुष्प पे विराजमान रहती हैं। इनके एक हाथ में कमल के फूल और दूसरे हाथों में बाण है।

 

पौराणिक कथा:

हमारे पौराणिक कथाओं के अनुसार एक समय भूलोक पे दुर्गम नमक दैत्य के कारण लगातार कई वर्षों तक वर्षा न हुआ जिसके कारण धरती पे उपस्थित सभी प्रजा अन्न-जल के लिए त्राहिमाम करने लगी। इस दैत्य ने देवों से चारों वेद को चुरा लिया। तब माँ शाकंभरी ने प्रकट होक दुर्गम नमक दैत्य का वध कर के चारों वेद देवों को लौटाया। कहा जाता है की देवी शाकंभरी के सौ नेत्र थे इसलिए इन्हें शास्त्रों में शताक्षी भी कहा जाता है। देवी ने जब अपने नेत्रों से देवताओं को देखा तो धरती फिर से हरी-भरी हो गई और नदियों में जल धारा बहने लगी। सारे पेड़-पौधे खिल उठें। देवताओं के कष्ट दूर हो गएँ। तत्पश्च्यात देवी ने शरीर से उत्पन्न शक से धरती का पालन किया, जिस कारण उन्हें शाकंभरी कहा जाता है।

 

 

ये समस्त जानकारियां शास्त्र के अनुसार है|

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