आज नवरात्री का चतुर्थ दिन है। आज के दिन देवी कुष्मांडा की पूजा की जाती है। आइये आज हम जानेंगे की क्यों देवी की पूजा की जाती है और इनके नाम का अर्थ क्या है?
कुष्मांडा नाम में तीन शब्द छुपे हैं। प्रथम शब्द कु जिसका अर्थ है छोटा ऊष्मा जिसका अर्थ है ऊर्जा और लौकिक अंडा। अर्थात वो जिनसे इस ब्रह्माण्ड की रचना हुई। शस्त्रों के अनुसार ये माना जाता है की जब ये ब्रह्माण्ड नहीं था और केवल अंधकार हुआ करता था तब देवी ने मुस्कुरा के अंधकार को दूर किया तथा अपने उदर से अंड अर्थात इस ब्रह्माण्ड की रचना की। उनके शक्ति इतनी है की वो सूर्य के अंदर रह सकती हैं। कहा जाता है की सूर्य को दिशा और ऊर्जा माँ कुष्मांडा प्रदान करती हैं।
माँ कुष्मांडा का स्वरुप:
माँ का वाहन शेर है। उनके आठ भुजाएं हैं। उनके दाहिने भुजाओं में कमंडल, धनुष, तीर और कमल सुशोभित है। तथा उनके बाएं हाथों में अमृत कलश, जप माला, गदा और चक्र सुशोभित है। आठ भुजाएं होने के कारण इन्हें अष्ट भुजा देवी के नाम से जाना जाता है।
मन्त्र: ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥
प्राथना:
सुरासम्पूर्ण कलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
स्तुति:
या देवी सर्वभूतेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
प्रभाव माँ के ध्यान का:
माँ का ध्यान और आराधना करने से हमारे अंदर स्थित अनाहत चक्र क्रियाशील होती है।
इनकी उपासना से हमारे शरीर में स्थित समस्त रोग व् शोक दूर हो जाते हैं। और इसके साथ ही भक्तों को आयु, यश, बल तथा आरोग्य के साथ सभी सुखों की प्राप्ति होती है।