जानिए क्या है कावड़ यात्रा ? सावन में ही क्यों की जाती है ? क्या है इसका महत्तव ?

Kavad-Yatra

कावड़ यात्रा मतलब शिव भक्तो की आस्था एवं मस्ती की यात्रा|  यह यात्रा सावन के महीने में की जाती है क्योंकि सावन भगवान शिव की भक्ति का महीना है। इस महीने में विभिन्न माध्यमों से भगवान शंकर को प्रसन्न किया जाता है। सावन के महीने में भगवान शंकर के जलाभिषेक का भी विशेष महत्व है। जलाभिषेक से शिव प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं।


भगवान शिव की कृपा पाने के लिए कावड़ यात्रा भी एक श्रेष्ठ माध्यम है। कावड़ यात्रा का एक महत्व यह भी है कि यह हमारे व्यक्तित्व के विकास में सहायक होती है। लंबी कावड़ यात्रा से हमारे मन में संकल्प शक्ति और आत्मविश्वास जागता है। हम अपनी क्षमताओं को पहचान सकते हैं, अपनी शक्ति का अनुमान भी लगा सकते हैं।
यही वजह है कि सावन में लाखों श्रद्धालु कावड़ में पवित्र जल लेकर एक स्थान से लेकर दूसरे स्थान जाकर शिवलिंगों का जलाभिषेक करते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब सारे देवता सावन में शयन करते हैं तो भोलेनाथ का अपने भक्तों के प्रति वात्सल्य जागृत हो जाता है। कावड़ यात्रा से जुड़े कुछ नियम इस प्रकार हैं-

  1. कावड़ यात्रियों के लिए किसी भी प्रकार का नशा वर्जित रहता है। इस दौरान तामसी भोजन यानी मांस, मदिरा आदि का सेवन भी नहीं किया जाता।
  2. बिना स्नान किए कावड़ यात्री कावड़ को नहीं छूते। तेल, साबुन, कंघी करने व अन्य श्रृंगार सामग्री का उपयोग भी कावड़ यात्रा के दौरान नहीं किया जाता।
  3. कावड़ यात्रियों के लिए चारपाई पर बैठना एवं किसी भी वाहन पर चढ़ना भी मना है। चमड़े से बनी वस्तु का स्पर्श एवं रास्ते में किसी वृक्ष या पौधे के नीचे कावड़ रखने की भी मनाही है।
  4. कावड़ यात्रा में बोल बम एवं जय शिव-शंकर घोष का उच्चारण करना तथा कावड़ को सिर के ऊपर से लेने तथा जहां कावड़ रखी हो उसके आगे बगैर कावड़ के नहीं जाने के नियम पालनीय होती हैं।
    इस तरह कठिन नियमों का पालन कर कावड़ यात्री अपनी यात्रा पूरी करते हैं। इन नियमों का पालन करने से मन में संकल्प शक्ति का जन्म होता है।

यहां से शुरू हुई थी कावड़ यात्रा की परंपरा

सावन में कावड़ यात्रा निकालने की परंपरा काफी पुरानी है। कई बार लोगों के मन में सहज ही यह प्रश्न उठता है कि कावड़ यात्रा क्यों निकाली जाती है? भगवान आशुतोष के जलाभिषेक का क्या महत्व है ?

यूं तो कावड़ यात्रा का कोई पौराणिक संदर्भ नहीं मिलता, लेकिन कुछ किवंदतियां हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान परशुराम दिग्विजय (पूरी पृथ्वी को जीतने के बाद) के बाद जब मयराष्ट्र (वर्तमान मेरठ) से होकर निकले तो उन्होंने पुरा नामक स्थान पर विश्राम किया और वह स्थल उनको अत्यंत मनमोहक लगा। उन्होंने वहां पर शिव मंदिर बनवाने का संकल्प लिया। इस मंदिर में शिवलिंग की स्थापना करने के लिए पत्थर लाने वह हरिद्वार गंगा तट पर पहुंचे। उन्होंने मां गंगा की आराधना की और मंतव्य बताते हुए उनसे एक पत्थर प्रदान करने का अनुरोध किया।
यह अनुरोध सुनकर पत्थर रोने लगे। वह देवी गंगा से अलग नहीं होना चाहते थे। तब भगवान परशुराम ने उनसे कहा कि जो पत्थर वह ले जाएंगे, उसका चिरकाल तक गंगा जल से अभिषेक किया जाएगा। हरिद्वार के गंगातट से भगवान परशुराम पत्थर लेकर आए और उसे शिवलिंग के रूप में पुरेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित किया।
ऐसी मान्यता है कि जब से भगवान परशुराम ने हरिद्वार से पत्थर लाकर उसका शिवलिंग पुरेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित किया तब से कावड़ यात्रा की शुरूआत हुई। इसी मान्यता के कारण शिवभक्त कावड़िए तमाम कष्टों को सहते हुए हरिद्वार से गंगाजल लाकर पुरेश्वर महादेव में शिवलिंग पर अर्पित करते हैं।

क्या आप जानते हैं, क्या होता है कावड़?

कावड़ का मूल शब्द ”कावर” है जिसका सीधा अर्थ कंधे से है। शिव भक्त अपने कंधे पर पवित्र जल का कलश लेकर पैदल यात्रा करते हुए ईष्ट शिवलिंगों तक पहुंचते हैं। धार्मिक मान्यताओं के लिए पूरे विश्व में अलग पहचान रखने वाले भारतवर्ष में कावड़ यात्रा के दौरान भोले के भक्तों में अद्भुत आस्था, उत्साह और अगाध भक्ति के दर्शन होते हैं। कावडिय़ों के सैलाब में रंग-बिरंगी कावड़े देखते ही बनती हैं।

आस्था का पर्व है सावन

कावड़ यात्रा निकालने के पीछे एक तथ्य यह है कि गंगा भगवान शिव की जटाओं में विराजमान हैं। इसलिए भगवान शंकर को गंगा अत्यंत प्रिय हैं। गंगाजल के अभिषेक से वह अत्यंत प्रसन्न होते हैं। इसी के साथ दूध, बेलपत्र और धतूरा अर्पित करने से भगवान आशुतोष भक्त पर प्रसन्न होते हैं और उस पर कृपा करते हुए मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं।

श्रावण मास भगवान शिव की साधना का सर्वश्रेष्ठ समय है, इसीलिए श्रद्धालु श्रावण मास में सोमवार के व्रत रखते हैं और भगवान भोलेशंकर की आराधना करते हुए उनके प्रिय पदार्थ उन्हें अर्पित करते हैं। भारत में श्रावण मास में शिवभक्ति का विराट रूप और आस्था का अनंत प्रवाह कावड़ यात्रा के रूप में दृष्टिगोचर होता है।