जानिए माँ बगलामुखी की गाथा

ऐसा माना जाता है कि  सौराष्ट्र में प्रकट हुये महातूफ़ान को शान्त करने के लिये भगवान विष्णु ने तपस्या की थी और इसी तपस्या के फलस्वरुप माँ बगलामुखी का जन्म हुआ था.

वैशाख महीने की शुक्ल पक्ष अष्टमी को बगलामुखी देवी ने अवतार लिया था। अष्टमी के दिन अवतरित होने के कारण इसे बगलामुखी जयंती नाम दिया गया है। इस दिन देवी की विधिवत पूजा की जाती है।

देवी के दस महाविद्या स्वरुप में से आठवां रूप माँ बगलामुखी का है. इन्हें पीताम्बरा और ब्रह्मास्त्र भी कहा जाता है. ये स्वयं पीली आभा से युक्त हैं और इनकी पूजा में पीले रंग का विशेष प्रयोग होता है. इनको स्तम्भन शक्ति की  देवी भी माना जाता है. शत्रु और विरोधियों को शांत करने के लिये तथा मुकदमे में विजय प्राप्त करने के लिये इनकी उपासना अचूक है इनकी उपासना में हल्दी की माला पीले फूल और पीले वस्त्रो का विधान है।

माँ बगलामुखी देवी अपने भक्तों के कष्टों को दूर कर उन्हें भयमुक्त करती हैं।  माँ बगलामुखी देवी रत्नजड़ित सिंहासन पर विराजमान होती हैं तथा उनके भक्तों को तीनों लोकों में कोई पराजित नहीं कर सकता। बगला शब्द संस्कृत भाषा से आया है जिसका अर्थ है दुल्हन। बगलामुखी रूप में देवी अपने अलौलिक सौंदर्य का प्रतिनिधित्व करती हैं। 


माँ बगलामुखी की पूजा :- 

बगलामुखी देवी की आराधना बहुत संयम पूर्वक की जाती है। बगलामुखी जयंती के दिन प्रातः स्नान करके सबसे पहले पीले वस्त्र धारण करें। पवित्र स्थल जहां पर पूजा करनी है उसे गंगा जल से धो दें। ध्यान रहे कि देवी की पूजा मंदिर में हमेशा अकेले करें या गुरु के साथ करें। देवी की पूजा करते समय पूर्व की तरह मुंह करें। बगलामुखी देवी को समर्पित करने के लिए पीले चावल, पीले फूल और पीले प्रसाद का प्रयोग करें। जयंती के व्रती निराहार रहें। रात में केवल फल का सेवन करें। दूसरे पूजा करने के बाद भोजन ग्रहण करें। पूजा करने के बाद छोटी कन्याओं को भोजन कराकर दक्षिणा दें

कहा –कहा पर है माँ बगलामुखी देवी का मंदिर :-

    माता बगलामुखी का यह मंदिर मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले के नलखेड़ा कस्बे में लखुंदर नदी के किनारे स्थित है। यह मन्दिर तीन मुखों वाली त्रिशक्ति बगलामुखी देवी को समर्पित है। मान्यता है कि द्वापर युग से चला आ रहा यह मंदिर अत्यंत चमत्कारिक भी है। इस मन्दिर में विभिन्न राज्यों से तथा स्थानीय लोग भी एवं शैव और शाक्त मार्गी साधू -संत तांत्रिक अनुष्ठान के लिए आते रहते हैं। यहाँ बगलामुखी के अतिरिक्त माता लक्ष्मी, कृष्ण, हनुमान, भैरव तथा सरस्वती की मूर्तियां भी स्थापित हैं।

कहते हैं कि इस मंदिर की स्थापना महाभारत में विजय के उद्देश्य से भगवान श्री कृष्ण की सलाह पर युधिष्ठिर ने की थी। विश्व में इनके सिर्फ तीन ही महत्वपूर्ण प्राचीन मंदिर हैं, जिन्हें सिद्धपीठ कहा जाता है। यह मन्दिर उन्हीं में से एक बताया जाता है। और श्री पीताम्बरा पीठ, बगलामुखी के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है जो कि मध्यप्रदेश के दतिया शहर में स्थित है ऐसा माना जाता है कि पीताम्बरा पीठ की स्थापना एक सिद्ध संत ने की थी, जिन्हें लोग ‘स्वामीजी महाराज’ कहकर पुकारते थे, कोई नहीं जानता कि वह कहाँ से आये थे, या उनका नाम क्या था,

 इन्होंने 1935 में दतिया के राजा शत्रुजीत सिंह बुन्देला के सहयोग से इस पीठ की स्थापना की थी। कभी इस स्थान पर श्मशान हुआ करता था, कोई नहीं जानता कि वह कहाँ से आये थे, या उनका नाम क्या था,

यह थी माँ बागलामुखी देवी की गाथा, कैसा लगा कमेंट में जरुर बताइए