कल से चैत्र नवरात्री , जानें कब और किस प्रकार करें घट स्थापना

हम सबने नए वर्ष को जनवरी के महीने में मनाया है। लेकिन हिन्दू नव वर्ष की शुरुआत तो चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होती है, जो की नव वर्ष का पहला दिन होता है। चैत्र नवरात्री की शुरआत भी नव वर्ष के पहले दिन से ही होती है। जो की 28 मार्च, मंगलवार से शुरू हो रही है। ये नौ दिन माँ देवी की उपासना का दिन है। नवरात्री के प्रथम दिवस सर्वप्रथम घट की स्थापना होती है, जिसमे ज्वारे(एक प्रकार का धन) बोएं जाते हैं। आइये आज हम जानें इसकी स्थापना की विधि:

 

घट स्थापना की विधि:

जिस जगह पे घट को स्थापित करना है उस जगह को गोबर से लीपें। जौ को एक मिट्टी के दीपक में बोएं। तत्पश्च्यात उसे पूजा के स्थान पे स्थापित करें। अपनी सहमत के अनुसार मिट्टी, तांबें, चांदी या सोने के कलश लेकर समय कुएं का पानी भरें। उसके बाद उस कलश में पूजा की सुपारी, सिक्का, हल्दी की गांठ डालें। तत्पश्च्यात इस कलश पे आम के पत्ते (डंठल वाले) रखें, और उसके ऊपर नारियल रख दें। दीपक की तरह कलश को भी पूजा स्थान पे स्थापित करें। यदि कलश के निचे थोड़ा गेहूं रखा हो तो बहुत अच्छा है। उस कलश की पूजा कुमकुम, अबीर, गुलाल, फूल व् चावल से करें।

 

अखंड ज्योत की विधि:

नवरात्री की पूजा के दौरान अखंड ज्योत जलने की भी विधि है। अखंड ज्योत को जलाने के लिए गाय के शुद्ध घी का दिया जलाएं तथा चावल, कुमकुम व् फूल से उसकी पूजा करें। तत्पश्च्यात इस मन्त्र का जप करते हुए दिए को स्थापित करें।

भो दीप ब्रह्मरूपस्त्वं ह्यन्धकारनिवारक।

इमां मया कृतां पूजां गृह्णंस्तेज: प्रवर्धय।।

 

शुभ मुहूर्त:

प्रातः काल: 08:00 से 10:24 तक  

दोपहर: १) 12:05 से 12:45 तक

         २) 01:10 से 03:15 तक

 

विशेषता इस नवरात्री के:

हमारे हिन्दू धर्म में एक वर्ष में चार नवरात्री मनाई जाती है जिसमे से दो गुप्त तथा दो क्रमश: चैत्र और आश्विन नवरात्री है। मिख्यातः लोग दो नवरात्री को जानते है: प्रथम चैत्र और द्वितीय आश्विन नवरात्री।

कई तरह के समानताएं है जो इन दो नवरात्री में है:

१) ऋतु साइंस के अनुसार जहाँ चैत्र नवरात्री ग्रीष्म के आगमन को दर्शाती है वहीं आश्विन की नवरात्री शीत के आगमन को बताती है। क्योंकि चैत्र नवरात्री चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से और नक्षत्र मूलक नवरात्री आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होती है।
२) ये दोनों नवरात्री फसल के तैयार होने की दृष्टि में भी महत्त्व रखते हैं। चैत्र में आषाढ़ी फसल अर्थात गेहूं, जौ इत्यादि तथा आश्विन में श्रावणी फसल धान तैयार होके आने लगते हैं। इसी कारण से नौ दिनों तक माता की आराधना की जाती है।