यज्ञ पर्यावरण की शुद्धि का सर्वश्रेष्ठ साधन है | यह वायुमंडल को शुद्ध रखता है| इसके द्वारा वातावरण शुद्ध व रोग रहित रहता है| यज्ञ एक ऐसी ओषधि है जो सुगंध भी देती है, तथा वातावरण को रोग मुक्त करता है| इसे करने वाला व्यक्ति सदा रोगो से दूर व प्रसन्नचित रहता है| आज के युग में इतनी सुविधा होने पर भी कभी – कभी मानव कई संक्रमित रोगाणुओं के आक्रमण से रोग ग्रसित हो जाता है और इन रोगो से छुटकारा पाने के लिए उसे अनेक प्रकार की दवाईया लेनी होती है| जबकि हवन, यज्ञ जो की बिना किसी कष्ट व पीड़ा के रोग के रोगाणुओं को नष्ट कर मानव को शीघ्र निरोगी करने की क्षमता रखता है| इस पर अनेक संधान भी हो चुके है तथा पुस्तके भी प्रकाशित हो चुकी है| विज्ञान के अनुसंधनो के अनुरूप यदि इस सामग्री के उपयोग से पूर्ण आस्था के साथ यज्ञ किया जाते तो निश्चित ही लाभ होगा |
(1) कैंसर नाशक हवन :-
गुलर के फूल अशोक की छाल, अर्जन, की छाल, लोथ माजूफल, दारुहल्दी, हल्दी, खोपरा, जो, चिकनी सुपारी, शतावरी, काकजंघा, मोचरस, खस मंजिष्ठ, अनारदाना, सफ़ेद चन्दन, लाल चन्दन, गंधा विरोजा, नारवी, जामुन के पत्ते, धाय के पत्ते सब को समान मात्रा में लेकर चूर्ण करे तथा इस में दस गुना शक्कर, एक गुना केसर दिन में तीन बार हवन करे |
(2) संधिगत ज्वर (जोड़ो का दर्द ) :-
संभालू ( निर्गुन्डी) के पत्ते, गुग्गल, सफ़ेद सरसो, नीम के पत्ते, रल आदि का संभाग लेकर चूरन कर घी सहित हवन करे व धुनी दे |
(3) जुकाम नाशक :- खुरासानी, अजवाइन, जटामासी, पश्मीना कागज, लाल बुरा सब को संभाग ले घी सचूर्ण कर सहित हित हवन करे व धुनी दे|
(4) पीनस (बिगड़ा) हुआ जुकाम):- बरगद के पत्ते, तुलसी के पत्ते, नीम के पत्ते, सहजन की छाल, सब को संभाग मिला कर चूरन कर ले इस में धुप का चुरा मिला कर हवन करे व धूनी दे |
(5) श्वास – कास नाशक :- बरगद के पत्ते, तुलसी के पत्ते, वच दोहकर मूल, अडसा- पत्र, सब का संभाग कर्ण लेकर घी सहित हवन कर धूनी दे|
(6) सर दर्द नाशक :- काले तिल और वाखडिंग चूरन संभाग लेकर घी सहित हवन कर धूनी देने से लाभ होगा |
(7) चेचक नाशक :- (खसरा) गुग्गल लोहवान, नीम के पत्ते, गंधक, कपूर, काले तिल वायसिंग, सब का संभाग चूरन लेकर घी सहित हवन करे व धुनी दे |
(8) टायफाइड :- यह एक मौसमी व भयानक रोग है| इस रोग के कारण इससे यथा समय उपचार न होने से रोगी अत्यंत कमजोर हो जाता है तथा समय पर उपचार न होने पर मृत्यु भी हो सकती है|उपवर्णित ग्रंथो के आधार पर यदि ऐसे रोगी के पास नीम, चिरायता,पित्तपापदा, त्रिफला आदि जड़ी बूटियों को संभाग लेकर इन से हवन किया जाये तथा इन का धुंआ रोगी को दिया जावे तो लाभ होगा |
(9) ज्वर :- ज्वर भी व्यक्ति को अति परेशान करता है, किन्तु जो व्यक्ति प्रतिदिन यज्ञ करता है | उसे ज्वर नहीं होता | ज्वर आने की अवस्था में अजवायन से यज्ञ कर तथा इस की धूनी रोगी को दे |
(10) नजला :- (सिरदर्द जुकाम) यह मानव को अत्यंत परेशान करता है | इससे शक्ति, आँख की शक्ति कमजोर हो जाती है तथा सर के बाल सफ़ेद होने लगते है | इनके निदान के लिए मुन्नका से हवन करे तथा इस की धूनी रोगी को दे लाभ होगा |
(11) नेत्र ज्योति :- नेत्र ज्योति बढ़ाने के लिए भी हवन एक उत्तम साधन है | इस के लिए हवन में शहद की आहुति देना लाभकारी है | शहद का धुंआ आँखों की रोशनी बढ़ाता है |
(12) मनोविकार:- मनो रोग से रोगी जीवित ही मृतक समान हो जाता है| इस के निदान के लिए गुग्गल तथा अपामार्ग का उपयोग करना चाहिए इस का धुंआ रोगी को आराम देता है |
(13)मधुमेह :- यह रोग भी रोगी को अशक्त करता है | इस रोग से छुटकारा पाने के लिए हवन में गुग्गल, लोवान, जामुन वृक्ष की छाल, करेला का रुथल सब मिला कर आहुति दे व इस की धूनी से रोग में लाभ होता है |
(14) पीलिया :- इस के लिए देवदारु, चिरायत, नागरमोथा, कुटकी, वायविडंग संभाग लेकर हवन में डाले इस का धुंआ रोगी को लाभ देता है |
(15) मलेरिया :- मलेरिया भी भयानक पीड़ा देता है ऐसे रोगी को बचाने के लिए गुग्गल, लोवान, कपूर, हल्दी, दारुहल्दी, अगर, वरवाडिंग, बालछद, जटामासी, देवदारु, बच कठु अजवायन, नीम के पत्ते संभाग लेकर संभाग घी डाल हवन करे इस का धुंआ लाभ देगा |