तिथि
हिन्दू काल गणना के अनुसार मास में ३० तिथियाँ होतीं हैं, जो दो पक्षों में बंटीं होती हैं। चन्द्र मास एक अमावस्या के अन्त से शुरु होकर दूसरे अमा वस्या के अन्त तक रहता है। अमावस्या के दिन सूर्य और चन्द्र का भौगांश बराबर होता है। इन दोनों ग्रहों के भोंगाश में अन्तर का बढना ही तिथि को जन्म देता है। तिथि की गणना निम्न प्रकार से की जाती है। तिथि
हिन्दू काल गणना
हिन्दू समय मापन, लघुगणकीय पैमाने पर प्राचीन हिन्दू खगोलीय और पौराणिक पाठ्यों में वर्णित समय चक्र आश्चर्यजनक रूप से एक समान हैं। प्राचीन भारतीय भार और मापन पद्धतियां, अभी भी प्रयोग में हैं (मुख्यतः हिन्दू और जैन धर्म के धार्मिक उद्देश्यों में)। यह सभी सुरत शब्द योग में भी पढ़ाई जातीं हैं। इसके साथ साथ ही हिन्दू ग्रन्थों मॆं लम्बाई, भार, क्षेत्रफ़ल मापन की भी इकाइयाँ परिमाण सहित उल्लेखित हैं। हिन्दू ब्रह्माण्डीय समय चक्र सूर्य सिद्धांत के पहले अध्याय के श्लोक 11–23 में आते हैं.
कृष्ण पक्ष
हिन्दू समय मापन, लघुगणकीय पैमाने पर कृष्ण पक्ष हिन्दू काल गणना अनुसार पूर्णिमांत माह के उत्तरार्ध पक्ष (१५ दिन) को कहते हैं। यह पक्ष पूर्णिमा से अमावस्या तक होता है।
शुक्ल पक्ष
हिन्दू समय मापन, लघुगणकीय पैमाने पर शुक्ल पक्ष हिन्दू काल गणना अनुसार पूर्णिमांत माह के द्वितीयार्ध पक्ष (१५ दिन) को कहते हैं। यह पक्ष अमावस्या से पूर्णिमा तक होता है।
पूर्णिमा
पूर्णिमा पंचांग के अनुसार मास की 15वीं और शुक्लपक्ष की अंतिम तिथि है जिस दिन चंद्रमा आकाश में पूरा होता है। इस दिन का भारतीय जनजीवन में अत्यधिक महत्व हैं। हर माह की पूर्णिमा को कोई न कोई पर्व अथवा व्रत अवश्य मनाया जाता हैं। .
प्रतिपदा
हिंदू पंचांग की पहली तिथि को प्रतिपदा कहते हैं। यह तिथि मास में दो बार आती है। पूर्णिमा के बाद और अमावस्या के बाद। पूर्णिमा के बाद आने वाली प्रतिपदा को कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा और अमावस्या के बाद आने वाली प्रतिपदा को शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा कहते हैं।
द्वितीया
द्वितीया हिन्दू काल गणना अनुसार माह की दूसरी तिथि होती है। यह तिथि प्रत्येक पक्ष में आती है, जिस कारण माह में दो द्वितियाएं होती हैं, – एक कृष्ण पक्ष द्वितीया, दूसरी शुक्ल पक्ष द्वितीया। .
तृतीया
हिंदू पंचांग की तीसरी तिथि को पंचमी कहते हैं। यह तिथि मास में दो बार आती है। पूर्णिमा के बाद और अमावस्या के बाद। पूर्णिमा के बाद आने वाली तृतीया को कृष्ण पक्ष की तृतीया और अमावस्या के बाद आने वाली तृतीया को शुक्ल पक्ष की तृतीया कहते हैं।
पंचमी
हिंदू पंचांग की पांचवीं तिथि को पंचमी कहते हैं। यह तिथि मास में दो बार आती है। पूर्णिमा के बाद और अमावस्या के बाद। पूर्णिमा के बाद आने वाली पंचमी को कृष्ण पक्ष की पंचमी और अमावस्या के बाद आने वाली पंचमी को शुक्ल पक्ष की पंचमी कहते हैं।
षष्ठी
हिंदू पंचांग की छठी तिथि को षष्ठी कहते हैं। यह तिथि मास में दो बार आती है। पूर्णिमा के बाद और अमावस्या के बाद। पूर्णिमा के बाद आने वाली षष्ठी को कृष्ण पक्ष की षष्ठी और अमावस्या के बाद आने वाली षष्ठी को शुक्ल पक्ष की षष्ठी कहते हैं। .
सप्तमी
हिंदू पंचांग की सातवीं तिथि को सप्तमी कहते हैं। यह तिथि मास में दो बार आती है। पूर्णिमा के बाद और अमावस्या के बाद। पूर्णिमा के बाद आने वाली सप्तमी को कृष्ण पक्ष की सप्तमी और अमावस्या के बाद आने वाली सप्तमी को शुक्ल पक्ष की सप्तमी कहते हैं।
अष्टमी
हिंदू पंचांग की आठवीं तिथि को पंचमी कहते हैं। यह तिथि मास में दो बार आती है। पूर्णिमा के बाद और अमावस्या के बाद। पूर्णिमा के बाद आने वाली अष्टमी को कृष्ण पक्ष की अष्टमी और अमावस्या के बाद आने वाली अष्टमी को शुक्ल पक्ष की अष्टमी कहते हैं। .
नवमी
हिंदू पंचांग की नौवीं तिथि को नवमी कहते हैं। यह तिथि मास में दो बार आती है। पूर्णिमा के बाद और अमावस्या के बाद। पूर्णिमा के बाद आने वाली नवमी को कृष्ण पक्ष की नवमी और अमावस्या के बाद आने वाली नवमी को शुक्ल पक्ष की नवमी कहते हैं। .
दशमी
हिंदू पंचांग की दसवीं तिथि को दशमी कहते हैं। यह तिथि मास में दो बार आती है। पूर्णिमा के बाद और अमावस्या के बाद। पूर्णिमा के बाद आने वाली दशमी को कृष्ण पक्ष की दशमी और अमावस्या के बाद आने वाली दशमी को शुक्ल पक्ष की दशमी कहते हैं। .
एकादशी
हिंदू पंचांग की ग्यारहवी तिथि को एकादशी कहते हैं। यह तिथि मास में दो बार आती है। पूर्णिमा के बाद और अमावस्या के बाद। पूर्णिमा के बाद आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी और अमावस्या के बाद आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहते हैं। इन दोने प्रकार की एकादशियों का भारतीय सनातन संप्रदाय में बहुत महत्त्व है। .
द्वादशी
हिंदू पंचांग की बारहवीं तिथि को द्वादशी कहते हैं। यह तिथि मास में दो बार आती है। पूर्णिमा के बाद और अमावस्या के बाद। पूर्णिमा के बाद आने वाली द्वादशी को कृष्ण पक्ष की द्वादशी और अमावस्या के बाद आने वाली द्वादशी को शुक्ल पक्ष की द्वादशी कहते हैं। .
त्रयोदशी
हिंदू पंचांग की तेरहवीं तिथि को त्रयोदशी कहते हैं। यह तिथि मास में दो बार आती है। पूर्णिमा के बाद और अमावस्या के बाद। पूर्णिमा के बाद आने वाली त्रयोदशी को कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी और अमावस्या के बाद आने वाली त्रयोदशी को शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी कहते हैं। .
चतुर्दशी
हिंदू पंचांग की चौदहवीं तिथि को चतुरदशी कहते हैं। यह तिथि मास में दो बार आती है। पूर्णिमा के बाद और अमावस्या के बाद। पूर्णिमा के बाद आने वाली चतुरदशी को कृष्ण पक्ष की चतुरदशी और अमावस्या के बाद आने वाली चतुरदशी को शुक्ल पक्ष की चतुरदशी कहते हैं। .
अमावस्या
अमावस्या हिन्दू पंचांग के अनुसार माह की ३०वीं और कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि है इस दिन का भारतीय जनजीवन में अत्यधिक महत्व हैं। हर माह की अमावस्या को कोई न कोई पर्व अवश्य मनाया जाता हैं। सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते हैं। .
ये १-१५ तक तिथियों को निम्न नाम से कहते हैं:-
मूल नाम | तद्भव नाम |
पूर्णिमा | पूरनमासी |
प्रतिपदा | पड़वा |
द्वितीया | दूज |
तृतीया | तीज |
चतुर्थी | चौथ |
पंचमी | पंचमी |
षष्ठी | छठ |
सप्तमी | सातें |
अष्टमी | आठें |
नवमी | नौमी |
दशमी | दसमी |
एकादशी | ग्यारस |
द्वादशी | बारस |
त्रयोदशी | तेरस |
चतुर्दशी | चौदस |
अमावस्या | अमावस |
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