क्या है सत्यनारायण पूजा का महत्व और किस प्रकार करें इनकी पूजा?

सत्यनारायण पूजा हमारे हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण पूजा में से एक पूजा है। यह व्रत सबसे महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित व्रत में से एक व्रत है। इस पूजा के दौरान हम भगवान श्री हरी विष्णु के सत्य रूप की पूजा की जाती है। ये पूजा सामान्यतः किसी खास त्यौहार या पूर्णिमा के दिन किया जाता है लेकिन भगवान विष्णु के सत्य स्वरुप की पूजा मनोकामना की पूर्ति के लिए भी की जाती है। आज हम जानेंगे की किस प्रकार सत्यनारायण की पूजा करनी चाहिए और इसके कथा का क्या महत्व है?

 

आवश्यक बातें पूजा के पूर्व:

हमारे प्रमुख्य ग्रन्थ स्कंदपुराण तथा भविष्यपुराण में भगवान सत्यनारायण और उनके कथा का वर्णन किया गया है। इसके अनुसार यदि किसी ने इस पूजा का संकल्प लिया है तो उन्हें ये अवश्य करना चाहिए तथा इसके प्रसाद का अपमान नहीं करना चाहिए। सत्यनारायण व्रत और पूजा मुख्य रूप से पूर्णमासी के दिन करना चाहिए।

 

पूजा में उपयोग के लिए आवश्यक वस्तुएं:

शास्त्रों में उल्लेखित विधि के अनुसार सत्यनारायण पूजा के लिए केले के पत्ते, ताम्बें का लोटा, कलश जिसमे जल हो, दूध, वस्त्र के लिए लाल कपड़े, चावल, कुमकुम, दिये, तेल, रुई, धूपबत्ती, फूल, अष्टगंध, तुलसीदल, तिल, फल, मिठाई, नारियल, पंचामृत, सूखे मेवे, शक्कर, पान तथा प्रसाद के लिए गेहूं के आटे की पंजीरी की जरुरत होती है।

लेकिन यदि पूजा करने वाले के पास इतनी सारी वस्तुएं नहीं है तो उन्हें केवल पांच फल प्रसाद के लिए और पूजा के लिए फूल-माला और दीप-कलश हो तो भी हम पूजा कर सकते हैं। क्योंकि भगवान की आराधना के लिए मन की श्रद्धा सभी साधनों से ऊपर मानी जाती है।

 

पूजा विधि:

जो मनुष्य सत्यनारायण भगवान की पूजा करना चाहता है उन्हें सर्वप्रथम उस दिन व्रत का संकल्प लेते हुए शुद्ध वस्त्र को धारण करना चाहिए। पूजन शुरू करने के पूर्व पूजा स्थल को शुद्ध करना चाहिए। इसके बाद किसी छोटी लकड़ी की कुर्सी या पाटा को रखना चाहिए। उसके बाद पूजन स्थल पे या घर के दरवाजे पे केले के पत्ते को लगाना चाहिए। फिर छोटी लकड़ी की कुर्सी पे लाल वस्त्र को बिछाये। तत्पश्च्यातभगवान गणेशा को स्मरण करते हुए कलश की स्थापना करें और उनकी पूजा शुरू करें। गणेश स्थापना के पश्च्यात श्री हरी विष्णु के सत्य रूप सत्यनारायण जी की पूजा शुरू करें।

पूजा में सर्वप्रथम संकल्प लिया जाता है। इसलिए सर्वप्रथम संकल्प ले। पूजा में उपयोगी सभी वस्तुओं पे गंगा जल का छिड़काव करें। ध्यान रहें यदि पूजा में कोई अपनी पत्नी के साथ बैठ रहे हो तो उनका सर्वप्रथम गठजोड़ करना चाहिए। उसके बाद मन्त्रों और पूजा विधि के द्वारा क्रमानुसार भगवान श्री गणेश, श्री हरी विष्णु तथा शिव और माँ पार्वती की पूजा करें।

पूजा पश्च्यात कथा का आरम्भ होता है जो की इस पूजा का सबसे महत्वपूर्ण भाग है। कथा महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मनुष्य को सत्य के पथ पे चलने के लिए बतलाता है। और जो इस पथ पे नहीं चलता उनका धर्म और कर्म नष्ट होता है। कथा के पश्च्यात हवन करना चाहिए। उसके बाद उपस्थित सभी लोगों के बीच प्रसाद का वितरण करें।

 

पूजा करने के लाभ:

भविष्यपुराण के अनुसार यह व्रत मनुष्य को सभी मनोकामना की पूर्ति करता है तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।

 

ये समस्त जानकारियां शास्त्र के अनुसार है|

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