वरुथिनी एकादशी व्रत, क्या है इसका महत्त्व और इसकी विधि

एकादशी जिसमें हम श्री हरी की पूजा करते हैं। हमारे हिन्दू शास्त्रों में प्रत्येक एकादशी को विशेष महत्त्व दिया गया है। २२ अप्रैल शनिवार को वरुथिनी एकादशी है जिसे वरुथिनी ग्यारस के नाम से जाना जाता है। आज हम वरुथिनी एकादशी के बारे में जानेंगे।

व्रत विधि:

शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को करने के लिए व्रतधारी को दशमी तिथि से ही व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए। इसके पालन के लिए दशमी तिथि के रात्रि में ही सात्विक भोजन को ग्रहण करना चाहिए। भोजन में मांस, मुंग, चने, जौ, गेहूं, नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

सोते वक्त भूमि का प्रयोग करना चाहिए। यदि शयन श्री हरी के मूर्ति के सामने हो तो ये उत्तम साबित होता है। इस व्रत की शुरुआत दशमी तिथि के रात्रि से भोजन के पश्च्यात होती है, जो की द्वादशी के प्रातः काल में ब्राह्मणों को भोजन और दान करने के बाद ही समाप्त होता है।

स्नान करने के लिए व्रत के दिन जिन चीजों का पूजन किया गया, उन्हीं चीजों का लेप का प्रयोग करना चाहिए।  इन चीजों में आवलें का लेप, मिट्टी या टिल का प्रयोग करना चाहिए। तत्पश्च्यात प्रात: काल व्रत का संकल्प लेने के बाद  श्री विष्णु जी की पूजा करें। उसके लिये धान्य का ढेर रखकर उस पर मिट्टी या तांबे का घड़ा रखें। उसपर लाल रंग का वस्त्र बांधकर, भगवान श्री हरी की पूजा, धूप, दीप और पुष्प से करें।

 

*  जब व्रत कर रहें हो तब व्रत के दिन किसी की बुराई, किसी से हिंसा या झगड़ा, क्रोद्ध इत्यदि चीजों का त्याग करें।

 

लाभ वरुथिनी एकादशी के:

हमारे ग्रन्थ पद्म पुराण के अनुसार इस दिन व्रत करने से पापों का नाश होता है और सुख की प्राप्ति होती है। इस व्रत से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत के करने से सूर्य ग्रहण के दिन किये गए दान से ज्यादा पुण्य की प्राप्ति होती है। इससे हाथी दान, भूमि का दान करने इतना पुण्य की प्राप्ति होती है।

 

ये समस्त जानकारियां शास्त्र के अनुसार है|

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