हिन्दू अथवा सनातन धर्म क्यों इतना ख़ास है ?

हिंदू धर्म के प्रमुख गुण है उदारता, सहिष्णुता व परोपकार जिससे हिन्दू धर्म का सदैव सरंक्षण होता रहा है।

कुछ लोग सोचतें हैं कि अन्य धर्मों के प्रति उदारता तथा सहिष्णुता का भाव दिखाना हिन्दू धर्म की कमजोरी है जिसके कारण इस्लाम और मसीही मत के प्रचारकों ने कई हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन किया है। किन्तु यहाँ उल्लेखनीय है कि हिन्दुओं के इस्लाम और मसीही मत के अंतर्गत आने से इन धर्मों के मूलस्वरूप में कई परिवर्तन आ गए हैं। हिन्दू धर्म के अनेक आचार- विचार उनमें शामिल हो गए हिन्दुओं की जाति  व्यवस्था भी भारतीय इस्लाम और मसीही मत में अच्छी तरह से प्रविष्ट और व्यवस्थित हो गयी।

हिन्दू धर्म किसी एक व्यक्ति को समस्त धर्म का प्रवक्ता या पैगम्बर नहीं मानता, यधपि वह प्रत्येक धर्म- प्रवक्ता या पैगम्बर की शिक्षा को महत्व देता है । जहाँ अन्य देशों के मतों ने धर्म को किसी एक व्यक्ति और उसकी परम्पराओं से जोड़ा वहीँ हिन्दू धर्म ने धर्म को उस रूप में प्रकट करने का प्रयत्न किया जीवन व परम्पराओं में विद्यमान रहते हुए भी एक सामान्य धर्म है जो व्यक्ति और समाज से निरपेक्ष है। हिन्दू धर्म अन्य धर्मो से अलग धर्म व मत में अंतर करता है। हिन्दू धर्म में भी अनेक मत है जैसे शंकराचार्य मत, रामानुज मत, अभिनवगुप्त मत आदि। इसी कारण  हिन्दू धर्म के कई सम्प्रदाय है।  

विश्व का सबसे प्राचीन धर्म, जिसका प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद 1200- 1000 ई.पू.का है। प्राचीन मिश्र, यूनान, बेबीलोन और रोम के धर्म नष्ट हो गए किन्तु हिन्दू धर्म अनादिकाल से आज भी विद्यमान है इसलिए इसे सनातन धर्म कहते है। इसकी प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-हिन्दू धर्म का उद्धभव या निर्माण ही ज्ञान से हुआ है। अतः यह ज्ञान स्वरुप है। वेदों के रूप में इसमें परम ब्रह्म सदैव विद्यमान रहता है। विश्व का एकमात्र धर्म जिसका निर्माण ज्ञान व वर्षों के अध्ययन व साधना से हुआ है।

  • धर्म श्रेय और साधन दोनों है। श्रेय रूप में वह वेद है, ब्रह्म है। साधन रूप में वह धर्म  प्राप्ति का मार्ग है।
  • जीव चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करता है। उसे मनुष्य योनि बड़े पुण्य से मिलती है। इस जन्म के बाद उसका पुनर्जन्म होता है जन्म मरण के इस चक्र को संसार चक्र कहतें हैं।  
  • जीवन के इस संसार चक्र में मनुष्य का एकमात्र साथी धर्म है। धर्म ज्ञान और कर्म दोनों रूप में है।  कर्म रूप में वह तीन प्रकार का है- प्रारब्ध, संचित और क्रियमाण।
  • वर्त्तमान जन्म जिस कर्म के फलस्वरूप मिलता है उसे प्रारब्ध  कहतें हैं।
  • प्रारब्ध के अतिरिक्त पूर्वजन्म के जो कर्म हैं वो संचित कहलाते हैं
  • इस जन्म में जो कर्म किये जातें हैं उन्हें क्रियमाण कहतें है जिनका फल अगले जन्म में मिलता हैं।
  • इसलिए हिन्दू धर्म कर्मवाद के सिद्धन्त को मानता है जिससे मनुष्य इस जीवन में अच्छे कर्म करके अपने आने वाले जीवन व अगले जन्म को संवार  सके। प्रारब्ध को तो मनुष्य को इसी जन्म में भोगना पड़ता है परन्तु धर्म के द्वारा मनुष्य संचित व क्रियमाण के प्रभाव से बच सकता है।
  • कर्म और उसके फल का संयोग करने वाला हे ईश्वर है जो कण कण में व्याप्त है। कुछ उसे ईश्वर कहतें है तो कुछ अदृष्ट और कुछ अपूर्व। ईश्वर ही सृष्टि करता है, पालता है व प्रलय करता है। ईश्वर मनुष्य को ज्ञान व भक्ति देकर कृतार्थ  करता है।  ईश्वर के विविध नाम व रूप हैं किन्तु उन सबका ईश्वरत्व एक है अर्थात सभी हिन्दू जिसको ईश्वर मानते वह गुणः और कर्म में एक ही है।
  • ईश्वर प्राप्त करने के मार्ग अनेक है जैसे – कर्म मार्ग, भक्ति मार्ग, ज्ञान मार्ग और योग मार्ग। ऋग्वेद में कहा गया है कि सद एक है और विद्वान लोग उसको अनेक प्रकार से कहतें हैं। इस प्रकार हिन्दू धर्म में उपासना के मार्ग अनेक हैं किन्तु सबकी मंजिल एक ही है।
  • ईश्वर धर्म की रक्षा के लिए और अधर्म का नाश करने के लिए तथा अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए समय समय पर अवतार लेता है। वह ब्रह्माण्ड का पिता है इसकी रक्षा करना उसी का काम है। उसके अनेक अवतार हैं।

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