जानें क्यों श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से काशी नगरी का अंत किया

काशी जहाँ आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसे शास्त्र के अनुसार मोक्ष की नगरी कहा जाता है क्योंकि काशी भगवान शिव की सबसे प्रिय नगर है और इसकी रक्षा स्वयं महादेव करते है। लेकिन आज हम जानेंगे की क्यों श्री कृष्ण ने महादेव की इस प्रिय नगर को सुदर्शन चक्र से जलाकर राख कर दिया।

 

सुर्दशन चक्र:

सुदर्शन चक्र जिसका अर्थ है केवल बुराई का नाश करना। ये ऐसा शास्त्र है जिसका प्रयोग कभी विफल नहीं जाता और इसका प्रयोग बहुत ही कम होता है। लेकिन इसका प्रयोग श्री कृष्ण ने काशी के ऊपर क्यों किया आइये जानते हैं।

 

शास्त्रों के अनुसार द्वापरयुग में जरासंध नाम का एक दुष्ट और क्रूर राजा था। इसके आतंक से प्रजा हमेशा परेशां रहती थी। इसकी दो पुत्रियां थी, जिनका नाम अस्ति और प्रस्ति था। उसने अपने दोनों पुत्रियों का विवाह राजा कंस के साथ कर दिया। लेकिन जब श्री कृष्ण ने कंस का वध किया तब अपने दामाद के वध की खबर सुनकर जरासंध अत्यंत क्रोधित हुआ और उसने वासुदेव कृष्ण का अंत करने की ठानी। उसने कृष्ण को मरने के लिए कई बार मथुरा पे हमले किये लेकिन हमेशा उसे हारका सामना करना पड़ा। तब उसने कलिंगराज पौंड्रक और काशीराज के साथ मिलकर कृष्ण को मरने की योजना बनाई लेकिन भगवान ने उन दोनों का वध कर दिया लेकिन जरासंध जान बचाकर भाग निकला।

 

कठोर तप भगवान शिव की:

काशी के महाराज के वध सुनकर उसके पुत्र ने काशी की राजगद्दी संभाली और शिव की कठोर तपस्या करने लगा ताकि वो कृष्ण का वध कर सके। तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने काशीराज को वर मांगने को कहा। तब उसने कृष्ण को समाप्त करने का वर माँगा। भोलेनाथ ने उसे समझाया लेकिन वो अड़ा रहा तब भगवान ने मन्त्रों के उच्चारण से एक भयानक कृत्या की रचना की और काशीराज को वरदान स्वरुप देते हुए कहा की इसका प्रयोग जिस दिशा में करोगे वो स्थान विनाश हो जायेगा। लेकिन इसका प्रयोग कभी भी किसी ब्राह्मण भक्त के ऊपर नहीं होना चाहिए नहीं तो ये पूर्णतः निष्फल हो जायेगा।

 

विध्वंस काशी नगरी का:

कालयवन राक्षस का वध करने के बाद श्रीकृष्ण समस्त मथुरावासी के साथ द्वारका नगरी पहुचें तब काशीराज ने उस कृत्या को श्री कृष्ण के वध के लिए भेजा। लेकिन श्री कृष्ण तो एक ब्राह्मण भक्त थे इसलिए कृत्या का प्रभाव निष्फल रहा कर वो वापस लौट आया। लेकिन श्री कृष्ण ने कृत्या को भस्म करने के लिए सुदर्शन चक्र को इसके पीछे छोड़ दिया। कृत्या को भस्म करने के लिए सुदर्शन काशी तक पांच कर उसको भस्म कर दिया। लेकिन फिर भी सुदर्शन चक्र शांत नहीं हुआ और उसने पुरे काशी को भस्म कर दिया।

 

काशी का पुनर्जीवन:

वारा और असि दो नदियों के कारन कालांतर में काशी को पुनः स्थापित किया गया और उसे वाराणसी नाम प्रदान किया गया।