नवग्रहों में राहु एक छाया ग्रह है, इसका अपना कोई स्वभाव नहीं होता, स्वतंत्र रूप से यह शनि के स्वभाव का होता है. ज्योतिष में राहु विच्छेदन , संचार , अभिनय , रहस्य और विष का कारक होता है. राहु ग्रहों के शुभ प्रभाव को घटा देता है और अशुभ प्रभावों को बढ़ा देता है. लग्न, तृतीय,षष्ठ,सप्तम,दशम और एकादश भाव में आम तौर से राहु शुभ होता है. अन्य भावों में राहु उस भाव के फल को नष्ट कर देता है.

मेष – राहु करियर तथा धन की बाधा दे सकता है. राहु के वैदिक मंत्र “ॐ रां राहवे नमः” का जाप करें.

वृष- वैवाहिक जीवन और भाग्य में अवरोध पैदा कर सकता है.

पीपल की जड़ में तिल मिला हुआ जल डालें , शनिवार को सात्विक रहें.

मिथुन- घर और भाइयों से दूर कर सकता है , साथ ही वाणी ख़राब कर देता है.

सूर्य को जल दें,अमावस्या को किसी निर्धन को भोजन करायें.

कर्क- अगर राहु ख़राब हो तो वैवाहिक जीवन छिन्न-भिन्न कर देता है , साथ ही कर्ज हमेशा बना रहता है.

नीले कपडे में चन्दन का टुकड़ा बांधकर धारण करें, झूठ से बचें.

सिंह- राहु का असर इनके व्यवसाय और संपत्ति पर होता है, मुकदमों का सामना करना पड़ सकता है.

चांदी का चौकोर टुकड़ा गले में पहनें, शनिवार को शराब या सिरके को बहा दें.

कन्या- शिक्षा में बाधा आती है , व्यक्ति अड़ियल और जिद्दी हो जाता है.

हाथी दांत या शंख धारण करें, राहु की वस्तुओं का दान करें.

तुला- संपत्ति सम्बन्धी मामलों में समस्या आती है , किसी भी प्रकार का सुख नहीं मिलता.

प्रकाश का दान करें,राहु के तांत्रिक मंत्र का जाप करें – ‘ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौ सः राहवे नमः”

वृश्चिक- भाई बहनों से सम्बन्ध बिगाड़ देता है , साथ ही घर से दूर जाकर जीविका मिलती है.

चन्दन का तिलक लगायें, पूजा स्थान पर हमेशा नारियल रखें.

धनु- व्यक्ति को कपट करने की आदत पड़ जाती है और व्यक्ति धन की तंगी में रहता है.

शंख या हाथी दांत धारण करें, चन्दन की सुगंध का अधिक से अधिक प्रयोग करें.

मकर- स्वास्थ्य ख़राब रहता है, रहस्यमयी रोग हो जाते हैं.

राहु के वैदिक मंत्र – “ॐ रां राहवे नमः’ का जाप करें , हमेशा सात्विक भोजन करें.

कुम्भ- वैराग्य पैदा करता है , कभी कभी नशे की प्रवृति भी देता है.

नीले कपड़े में चन्दन का टुकड़ा धारण करें, पिता के साथ रिश्ते अच्छे रखें.

मीन- व्यक्ति के चरित्र में दोष आ जाता है , धन के मामले में उतार चढ़ाव आता रहता है.

चांदी का चौकोर टुकड़ा गले में पहनें, मोर पंख साथ में रखें.

अगर आप किसी भी प्रकार की जानकारी चाहते है तो संपर्क करे हमारे विशेषज्ञ पंडित जी से |  अगर किसी भी तरह की परेशानी है, जिस से आप मुक्ति चाहते है,या आपके जीवन, कुंडली से सम्बंधित जानकारी चाहते है, तो सलाह ले हमारे जाने माने ज्योतिषीय सलाहकारों से कॉल करे (Call Us+91 9009444403 या हमे व्हाट्सएप्प (Whatsapp) पर सन्देश (Message) भेजे एवं जानकारी प्राप्त करे |

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सृष्टि के नियम से न सिर्फ इंसान बल्कि भगवान भी बंधे हैं और उन्हें भी इसका पालन करना होता है। इसलिए जब भगवान ने मनुष्य रुप में जन्म लिया तब उन्हें भी अपना शरीर त्यागना पड़ा फिर सामान्य मनुष्य कि बात ही क्या है।  लेकिन मनुष्य के अनुरोध पर यमराज ने मृत्यु से पहले चार संदेश देने का वचन दिया था जिसका पालन आज भी यमराज करते हैं इसके साथ ही मृत्यु बिल्कुल करीब आने पर कुछ एहसास भी दिलाते हैं कि अब वक्त पूरा हुआ अब शरीर त्यागने का समय आ गया है।

आइये जानें यह चार संदेश और संकेत क्या हैं।

सबसे पहले उन चार संदेशों की बात करें जो यमराज सामान्य मृत्यु से पहले हर किसी को भेजते हैं। आपने देखा होगा कि जब उम्र बढ़ने लगती है      तो सबसे पहले क्या होता है। व्यक्ति के बाल सफेद होने लगते हैं। दरअसल इसे पहला संदेश माना जाता है कि अब उम्र बढ़ रही है मोह की दुनिया से बाहर निकलना शुरु करो।

दूसरा संदेश जब कुछ और उम्र बढ़ती है तब प्राप्त होता है इस समय व्यक्ति के दांत गिरने लगते हैं। दांत का गिरना यह बताता है कि व्यक्ति का शरीर कह रहा है मुझे मुक्ति की जरुरत है मेरा मोह अब मत करो।

तीसरा संदेश होता है व्यक्ति की ज्ञानेन्द्रिय कमजोर पड़ जाती है व्यक्ति की सुनने और देखने की क्षमता कम हो जाती है। इस समय यमराज कहते हैं अब दुनिया की बातें सुनना छोड़कर आत्म चिंतन और मनन करो ताकि मुक्ति में परेशानी नहीं आए।

चौथा संदेश होता व्यक्ति की कमर झुक जाती है, शरीर अपना बोझ उठाने में असमर्थ हो जाता है और उसे सहारे की जरुरत पड़ जाती है। यमराज समझाते हैं कि बाहरी सहारा लेने की बजाया अब ईश्वर का सहारा लो वही तुम्हें कर्मों के फल से उत्तम लोक में स्थान दिला सकते हैं। जो मनुष्य यमराज के इन चार संदेशों को नहीं समझता है वही व्यक्ति नर्क में जाकर यमराज से दंड पाता है।

कई बार अल्पायु में भी मृत्यु व्यक्ति के प्राण हर लेते हैं। लेकिन ऐसे में भी 10 संकेत मनुष्य को प्राप्त होते हैं जिन पर गौर किया जाय तो जान सकते हैं कि मृत्यु अब करीब है। पानी में, तेल में, दर्पण में अपनी छवि नही आए या उनकी परछाई विकृत दिखाई देने लगे तो ऐसा माना जाता है कि व्यक्ति के शरीर त्यागने का समय नजदीक आ चुका है। मृत्यु के नजदीक आने पर व्यक्ति की आंखों की रोशनी खत्म हो जाती है और उसे अपने आस-पास बैठे लोग भी नजर नहीं आते जो भी अच्छे या बुरे कर्म किए हैं वह सारे कर्म व्यक्ति की आंखों के सामने से इस प्रकार गुजरते हैं जैसे किसी फिल्म को आप उलटा देख रहे हों यानी जीवन के अंतिम कर्म से लेकर जन्म तक की सभी घटनाएं आंखों के सामने तैरती चली जाती है। जिनके कर्म अच्छे होते हैं उन्हें अपने सामने एक दिव्य प्रकाश नजर आता है और व्यक्ति मृत्यु के समय भी भयभीत नहीं होता। गरुड़ पुराण में बताया गया है कि जब मृत्यु की घड़ी निकट आती है तो यम के दो दूत मरने वाले प्राणी के सामने आकर खड़े हो जाते हैं। जिनके कर्म अच्छे नहीं होते हैं उन्हें अपने सामने यम के भयंकर दूत खड़े दिखते हैं और वह भयभीत होता रहता है। शरीर त्याग करने के अंतिम समय में व्यक्ति की आवाज भी खत्म हो जाती है और वह बोलने की कोशिश करता है लेकिन बोल नहीं पाता है। आवाज घरघराने लगती है जैसे किसी ने गला दबा रखा हो। आत्मा जीवन की सभी घटनाओं को यानी कर्मों को अपने साथ लेकर शरीर को त्याग देती है और यमदूत व्यक्ति के अभौतिक शरीर को अपने साथ लेकर यमराज के दरबार की ओर ले जाते हैं। व्यक्ति के मृत्यु के बाद पापी मनुष्य को ढाई मुहूर्त में यानी लगभग 24 घंटे में यमदूत वायुमार्ग से यमलोक ले जाते हैं। यहां यमराज व्यक्ति के कर्मों का लेखा जोखा करते हैं इसके बाद यमदूत वापस व्यक्ति की आत्मा को लेकर पृथ्वी पर आते हैं।


सैकड़ों साल बाद मंगल का मंगल संयोग बना है. 2 मई बुधवार को शाम 4 . 19 मंगल मकर राशि में प्रवेश कर जाएंगे. आपको सात महालाभ मिलेगा. मंगल उच्च के हो जाएंगे. मंगल लगभग सात महीने तक मकर राशि में उच्च के होंगे. मंगल 6 नवम्बर तक उच्च के रहेंगे. बीच में दो  महीने 26 जून से 27 जुलाई तक वक्री रहेंगे. पौने दो साल पहले 2016  में भी मंगल उच्च के हुए थे. इतने ज्यादा लाभ नहीं दिए थे. मंगल उच्च का होगा तो सात महा लाभ देगा. आपका कारोबार अच्छा चलेगा. नौकरी में उन्नति होगी. जीवन सुखी होगा.

मंगल हिम्मत देगा. संघर्ष के लिए ताकत देता है. करियर अच्छा करता है –डॉक्टर ,सैनिक या पुलिस की नौकरी देता है.

मंगल  दोष को कम कर देता है. मांगलिकों की शादी हो जाती है

लोगों में गुस्सा कम हो जाता है

हम बात करेंगे मंगल क्या लाभ देगा और उपाय क्या होगा

सात लाभ कौन कौन से होंगे, क्या उपाय करें

2 मई को दो राजयोग बन रहे है

एक सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग बन रहा है

इसमें मंगल मकर  राशि  में उच्च के हो रहे है ,

सात महालाभ मिलेगा

1 -चुनाव ,नौकरी या व्यापार का कोई नया कॉन्ट्रैक्ट होगा

2 कुछ  लाभकारी मकान जमीन गाड़ी सोना चांदी आदि की खरीद बिक्री होगी

3 यात्रा करना या विदेश यात्रा सफल होगी

4 मुकदमा हुआ हो या नहीं हुआ तो भी आपकी जीत होगी -शत्रु हार जाएंगे

5 प्रेम विवाह का प्रयास करना सफल होगा

6 कोई उद्देश्य को पाने के लिए पूजा हवन सफल होगा

7 किसी भी परीक्षा या कॉम्पिटिशन में सफलता मिलेगी

हनुमान जी    बहुत लाभ देने वाले होते है

पूजन से  चारों दिशाओं से मंगल ही मंगल होगा

लाल वस्त्र पहने ,  लाल गुलाब  फूलों की माला हनुमान जी को चढ़ाएं

बूंदी का प्रसाद  चढ़ाएं

लाल मसूर और लाल वस्त्र का दान करें

 आपको लोन मिलेगा, आपका क़र्ज़ ख़तम करेगा

सभी लोन लेना चाहते हैं

क्रेडिट कार्ड का लोन भी बढ़ जाता है

बैंक, एडुकेशन, होम, कार या अन्य वाहन, बिजनेस खेती में लोन धड़ल्ले से दे रहें हैं

पढ़ाई ,घर गाड़ी व्यापार खेती के लिए बहुत रुपया पैसा चाहिए

आप भी लोन लेना चाहते हो ,ताकि आप लोन पर उच्च शिक्षा घर गाड़ी ले सको

ताकि अच्छा बिजनेस  या अच्छी  खेती  कर सको

मंगल उच्च का है – व्रत कर सकते हैं –मंगल  पूजा होगी

ताँबा धारण करें

हनुमान जी को साथ  मनाएं

हनुमान जी की पूजा भी कर सकते है

तीन -तीन बेलपत्र पर नारंगी सिंदूर लगाकर  चढ़ाएं

गुड की खीर का भोग लगाएं

व्यापार या शेयर बाज़ार में सफलता के लिए उपाय कर दें

9 लड्डू और 9 केले हनुमान जी को चढ़ाएं

मूंग का हलवा  हनुमान जी को चढ़ाएं और बाँट दें

लाल रूमाल में गुड बांधकर मजदूर को दान  करें.

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मानव जीवन में आवास का अत्यधिक महत्व है और आवास  निर्माण के लिए भूमि की आवश्यकता होती है. भूमि अलग अलग तरह की होती है, और हर भूमि की अलग अलग तरंगें होती हैं. जिस तरह की भूमि होती है, उसमें रहने वाले व्यक्ति के भाग्य पर वैसा ही असर पड़ता है. सही भूमि का चुनाव करके अगर हम उसका प्रयोग करें तो भाग्य को और भी ज्यादा मजबूत बना पाएंगे.

भूमि किस किस तरह की होती है?

– समतल भूमि, जो हर तरफ से बराबर हो, यह सर्वोत्तम भूमि है

– कूर्मपृष्ठ भूमि, जो बीच में ऊंची और चारों तरफ से नीची हो, यह उत्तम भूमि है

– गजपृष्ठ भूमि, जो नैऋत्य या वायव्य कोण में ऊंची हो, यह भी उत्तम भूमि है

– दैत्य भूमि, जो आग्नेय कोण या उत्तर दिशा में ऊँची हो, यह अधम भूमि है

– नाग भूमि, कहीं लम्बी, कहीं समतल, कहीं ऊँची नीची भूमि हो तो यह नाग भूमि है, यह भी अधम भूमि है

कैसे करें भूमि का परीक्षण?

– भूमि के उत्तर दिशा के कोण में लगभग एक डेढ़ फुट गहरा व चौड़ा गड्ढा खोदें

– उसमे से सारी मिट्टी निकालकर उस निकाली गयी मिट्टी से गड्ढे को पुनः भरें

– यदि गड्ढा भरने पर मिट्टी शेष बचती है अर्थात अधिक निकलती है तो वो भूमि अत्यंत शुभ है

 – यदि मिट्टी शेष नहीं बचती और पूरा गड्ढा भर जाता है तो भूमि मध्यम होगी

– यदि मिट्टी कम पड़ जाती है, गड्ढा नहीं भर पाता तो यह भूमि अधम है

– अधम भूमि पर मकान का निर्माण न करवायें

क्या करें उपाय अगर गलत भूमि पर मकान बन गया है?

– पूरे मकान का शोधन करवाएं

– एक बार घर में श्रीमदभागवद का पाठ जरूर करवाएं

– घर के मुख्य द्वार पर चौखट फिरसे विधि विधान से लगवाएं

– घर में ढेर सारे तुलसी के पौधे लगाएं

– घर में थोड़ी सी भूमि खाली छोड़ दें.

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हिन्दू कैलेंडर में, ज्येष्ठ का महीना , तीसरा महीना है. इस महीने में सूर्य अत्यंत ताक़तवर होता है , इसलिए गर्मी भी भयंकर होती है. सूर्य की ज्येष्ठता के कारण इस माह को ज्येष्ठ कहा जाता है. ज्येष्ठा नक्षत्र के कारण भी इस माह को ज्येष्ठ कहा जाता है. इस महीने में धर्म का सम्बन्ध जल से जोड़ा गया है , ताकि जल का संरक्षण किया जा सके. इस मास में सूर्य और वरुण देव की उपासना विशेष फलदायी होती है. इस बार ज्येष्ठ मास 01 मई से आरम्भ हो रहा है.

ज्येष्ठ मास का वैज्ञानिक महत्व क्या है?

– इस माह में वातावरण और शरीर में जल का स्तर गिरने लगता है

– अतः जल का सही और पर्याप्त प्रयोग करना चाहिये

– सन स्ट्रोक और खान पान की बीमारियों से बचाव आवश्यक है

– इस माह में हरी सब्जियां , सत्तू , जल वाले फलों का प्रयोग लाभदायक होता है

– इस महीने में दोपहर का विश्राम करना भी लाभदायक होता है

इस माह में किस प्रकार जल (वरुण) देव और सूर्य की कृपा पायी जा सकती है?

– नित्य प्रातः और संभव हो तो सायं भी पौधों में जल दें

– प्यासों को पानी पिलायें , लोगों को जल पिलाने की व्यवस्था करें

– जल की बर्बादी न करें , घड़े सहित जल और पंखों का दान करें

 – नित्य प्रातः और सायं सूर्य मंत्र का जाप करें

– अगर सूर्य सम्बन्धी समस्या है तो ज्येष्ठ के हर रविवार को उपवास रखें

ज्येष्ठ के मंगलवार की क्या महिमा है?

– ज्येष्ठ के मंगलवार को हनुमान जी की विशेष पूजा की जाती है

– इस दिन हनुमान जी को तुलसी दल की माला अर्पित की जाती है

– साथ ही हलवा पूरी या मीठी चीज़ों का भोग भी लगाया जाता है

– इसके बाद उनकी स्तुति करें

– निर्धनों में हलवा पूरी और जल का वितरण करें

– ऐसा करने से मंगल सम्बन्धी हर समस्या का निदान हो जाएगा

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हिंदू समाज में जिस प्रकार श्री राम नवमी का महत्व है, उसी प्रकार सीता नवमी का भी है. जिस प्रकार अष्टमी तिथि भगवती राधा तथा भगवान श्रीकृष्ण का आविर्भाव से संबंध है, उसी प्रकार नवमी तिथि भगवती सीता तथा भगवान श्री राम के आविर्भाव की तिथि होने से परम आदरणीय है. भगवती राधा का आविर्भाव भाद्रपद शुक्ल अष्टमी और भगवान श्री कृष्ण का आविर्भाव भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को अर्थात दो विभिन्न अष्टमी तिथियों में हुआ. उसी प्रकार भगवती सीता का आविर्भाव वैशाख शुक्ल नवमी और भगवान श्रीराम का आविर्भाव चैत्र शुक्ल नवमी को अर्थात दो विभिन्न नवमी तिथियों में हुआ. सीता नवमी के बारे में विस्तार से बता रहे हैं पंडित अरुण मिश्रा 

देवी का प्राकट्य उत्सव

वैशाख मास की शुक्ल नवमी को जबकि पुष्य नक्षत्र था, मंगल के दिन संतान प्राप्ति की कामना से यज्ञ की भूमि तैयार करने के लिए राजा जनक हल से भूमि जोत रहे थे. उसी समय पृथ्वी से देवी का प्राकट्य हुआ. जोती हुई भूमि को तथा हल की नोक को भी सीता कहते हैं. अतः प्रादुर्भूत भगवती विश्व में सीता के नाम से विख्यात हुई. इसी नवमी की पावन तिथि को भगवती सीता का प्राकट्य उत्सव मनाया जाता है.

क्या करें सीता नवमी पर

अष्टमी तिथि को ही नित्यकर्मों से निर्मित होकर शुद्ध भूमि पर सुंदर मंडप बनाएं, जो तोरण आदि से मंडप के मध्य में सुंदर चौकोर वेदिका पर भगवती सीता एवं भगवान श्री राम की स्थापना करनी चाहिए. पूजन के लिए स्वर्ण, रजत, ताम्र, पीतल, एवं मिट्टी इनमें से यथासंभव किसी एक वस्तु से बनी हुई प्रतिमा की स्थापना की जा सकती है. मूर्ति के अभाव में चित्रपट से भी काम लिया जा सकता है. जो भक्त मानसिक पूजा करते हैं उनकी तो पूजन सामग्री एवं आराध्य सभी भाव में ही होते हैं. भगवती सीता एवं भगवान श्री राम की प्रतिमा के साथ साथ पूजन के लिए राजा जनक, माता सुनैना, पुरोहित शतानंद जी, हल और माता पृथ्वी की भी प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए. नवमी के दिन नित्य कर्म से निवृत्त होकर श्री जानकी राम का संकल्प पूर्वक पूजन करना चाहिए. सर्वप्रथम पंचोपचार से श्री गणेश जी और भगवती पार्वती का पूजन करना चाहिए. फिर मंडप के पास ही अष्टदल कमल पर विधिपूर्वक कलश की स्थापना करनी चाहिए. यदि मंडप में प्राण-प्रतिष्ठा हो तो मंडप में स्थापित प्रतिमा या चित्र में प्राण प्रतिष्ठा करनी चाहिए. प्रतिमा के कपड़ों का स्पर्श करना चाहिए. भगवती सीता का श्लोक के अनुसार ध्यान करना चाहिए. आज के दिन माता सीता की पूजन करने से सर्वश्रेष्ठ लाभ प्राप्त होता है.

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हर व्यक्ति पांच तत्वों तथा नौ ग्रहों से नियंत्रित होता है. हर तत्व की एक विशेषता होती है और जब यही तत्व प्रधान हो जाता है तो व्यक्ति के अन्दर खास गुण पैदा हो जाता है. अगर केवल ग्रहों का साथ हो तो व्यक्ति परिश्रम से खास बनने की कोशिश करता है. जबकि अगर केवल तत्वों का साथ हो तो व्यक्ति खास स्थितियों में जन्म लेता है परन्तु उसका प्रयोग नहीं कर पाता.

अगर व्यक्ति के अन्दर खास बात हो और साथ में ग्रहों का साथ मिल जाए तो व्यक्ति अपनी विशेषता से महान बन जाता है. बिना किसी खास बात या विशेषता के किसी व्यक्ति का जन्म नहीं होता, इसलिए हर व्यक्ति को अपनी विशेषता पहचानने का प्रयास करना जरूर करना चाहिए.

किस तरह जानें कि आप के अन्दर कौन सी खास बात है. अपनी कुंडली का या हस्तरेखाओं का गंभीर अध्ययन और विश्लेषण कराएं ताकि आपको ये पता लग सके कि आपका जीवन किस दिशा की ओर जा रहा है. अपनी प्रवृत्तियों और आदतों को देखें ताकि आप अपने मन को समझ सकें. आपका पसंदीदा रंग, आपका पसंदीदा खाना भी काफी हद तक ये बता सकता है कि आप अपने किस गुण के कारण खास बन सकते हैं.

जो गुण या ज्ञान आपको बिना किसी विशेष मेहनत के मिला है वो आपको खास बना सकता है. अगर आपका झुकाव किसी विशेष उपलब्धि की ओर है और उसको पाने में मुश्किल आ रही है तो ये चीज भी आपको खास बना सकती है.

कौन सा ग्रह किस प्रकार खास बनाता है या किस प्रकार की ताकत देता है?

– सूर्य – शासन, राजनीति और नेतृत्व का खास गुण देता है.

– चन्द्रमा- कला, चिकित्सा, जनकल्याण और शासन की खासियत देता है.

– मंगल- शौर्य, साहस, तकनीक और नवीन कार्य करने की ताकत देता है.

– बुध- वाणी, प्रखरता, चालाकी और धूर्तता की शक्ति देता है.

– बृहस्पति- ज्ञान, वैराग्य, धर्म और न्याय का खास गुण देता है.

– शुक्र- सौंदर्य, वैभव, मान-सम्मान और चिकित्सा का गुण देता है.

– शनि- अनुशासन, न्याय, व्यवस्था, लोगो की चिंता करने का गुण देता है, कभी-कभी अपराध भी देता है.

– राहु-केतु- अभिनय, संचार, गुप्तचर, नए अनुसंधान और षड़यंत्र की खासियत देता है.

किस तरह अपनी खासियत को (ताकत) निखार कर, सफलता प्राप्त करें?

– अगर ग्रह की नकारात्मकता प्रभावशाली है तो उस ग्रह के स्वभाव को छोड़ने का प्रयास करें.

– अगर ग्रह सकारात्मक रूप से आपको ताकत दे रहा है तो उसके अनुसार आचरण करें.

– शुभ और सकारात्मक कार्य में अगर बाधा आ रही हो तो कार्य को और भी तीव्र गति से करें.

– नित्य प्रातः नवोदित सूर्य को सादा जल अर्पित करें.

– प्रातः अपने माता पिता का चरण स्पर्श करें और अपने सर पर उनके हाथ से आशीर्वाद लें.

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कुंडली में चतुर्थ, सप्तम भाव और चन्द्रमा की स्थिति से आप मन का भाव जान सकते हैं. ये भी जान सकते हैं कि व्यक्ति दूसरों की बुराई करता है अथवा नहीं. अगर चतुर्थ भाव या चन्द्रमा खराब हो और उसको मंगल अथवा शनि का साथ मिल जाए तो दूसरों की बुराई के साथ साथ उनको नुकसान पहुंचाने का भाव भी आ जाता है. हाथ में अंगूठा अगर छोटा हो तो भी बुराई और नुकसान पहुंचाने का भाव आता है.

क्या समस्या होती है अगर हम दूसरों की बुराई लगातार करते हैं?

– इससे धन और परिवार का सुख समाप्त होता है

– इससे कुंडली का बृहस्पति कमजोर होता है, अतः अपयश के योग बन जाते हैं.

– अगर संतान बाधा है तो यह बाधा और भी मजबूत होकर सामने आ जाती है.

– उस व्यक्ति के मन में हमारे लिए भी शत्रु भाव पैदा होने लगता है

क्या होता है अगर हम जानबूझकर किसी को नुकसान पहुंचाने का प्रयास करते हैं?

– जीवन में आकस्मिक रूप से धन कि बड़ी हानि हो सकती है .

– जिस प्रकार से दूसरों को परेशान करना चाहते हैं , उसी प्रकार से खुद परेशान हो सकते हैं

– चलते चलते जीवन एकदम से रुक सकता है , और जीवन में बड़े अपयश मिल सकते हैं.

– आम तौर पर ऐसी दशा में संपत्ति का नाश भी होता हुआ दिखता है .

– संतान अपने हाथों से निकल जाती है , और संतान पक्ष से कष्ट की सम्भावना बन जाती है .

इन बुराइयों से मुख्य रूप से कौन कौन से ग्रह प्रभावित होते हैं?

– इससे राहु और शनि मजबूत होते हैं , जो संघर्ष बढ़ा सकते हैं

– इससे बृहस्पति और शुक्र कमजोर होते हैं

 – और सबसे ज्यादा इससे सूर्य बुरी तरह ख़राब हो जाता है

– ऐसी आदतों से हथेलियों का रंग भी कालेपन की ओर जाने लगता है

अगर हम दूसरों की बुराई करने की खुद की आदत से परेशान हैं तो क्या उपाय करें?

-नित्य प्रातः सूर्य को जल अर्पित करें

– वहीँ पर बैठकर गायत्री मंत्र का जाप करें

– पीले रंग का अधिक से अधिक प्रयोग करें

– प्रयास करें कि तामसिक भोजन , विशेषकर मदिरा का सेवन न करें

– जब भी ऐसा भाव आये , गायत्री मंत्र का जाप करें

अगर कोई दूसरा हमारी बुराई करता हो और हमें नुकसान पहुंचाना चाहता हो?

– घर से हमेशा हनुमान जी को प्रणाम करके निकलें

– जिसके बारे में ऐसी जानकारी हो , उसके संपर्क से बचें

– हर सोमवार को प्रातः शिव जी को सुगंध और जल अर्पित करें

– और हर शनिवार को पीपल के नीचे सरसों के तेल का एक दीपक जलाएँ.

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तंत्र शास्त्र दस महाविद्याओं के वर्णन से सजा है. उनमें से प्रमुख हैं मां बगलामुखी. मां भगवती बगलामुखी का महत्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट है. विश्व में इनके सिर्फ तीन ही महत्वपूर्ण प्राचीन मंदिर हैं, जिन्हें सिद्धपीठ कहा जाता है.  आइए जानें उनके विशेष मंत्र….

1. मां बगलामुखी विशेष मंत्र :-  

‘ॐ ह्रीं बगलामुखी सर्व दुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलयं बुद्धिं विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा।’

नोट : हल्दी की माला से इस मंत्र का जप करें.

2. अकाल मृत्यु से बचने का मां बगलामुखी मंत्र :-

‘ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं ब्रह्मविद्या स्वरूपिणी स्वाहा:’

नोट : रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करें.

3. नजर नाशक मंत्र :-

‘ॐ ह्लीं श्रीं ह्लीं पीताम्बरे तंत्र बाधाम नाशय नाशय’

नोट : रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करें.

4. सफलता का बगलामुखी मंत्र :-

‘ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं बगामुखी देव्यै ह्लीं साफल्यं देहि देहि स्वाहा:’

 नोट : रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करें.

5. भयनाशक बगलामुखी मंत्र :-

‘ ॐ ह्लीं ह्लीं ह्लीं बगले सर्व भयं हन’

नोट :रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करें.

6. बगलामुखी सुरक्षा कवच मंत्र

‘ॐ हां हां हां ह्लीं बज्र कवचाय हुम’

नोट : रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करें.

7. बच्चों की रक्षा का मंत्र:-

‘ॐ हं ह्लीं बगलामुखी देव्यै कुमारं रक्ष रक्ष’

नोट : रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करें.

8. शत्रुनाशक मंत्र:-

‘ॐ बगलामुखी देव्यै ह्लीं ह्रीं क्लीं शत्रु नाशं कुरु’

नोट : रुद्राक्ष की माला से इस मंत्र का जप करें.

– इनकी पूजा तंत्र की पूजा है अतः बिना किसी गुरु के निर्देशन के नही करनी चाहिए

अगर आप किसी भी प्रकार की जानकारी चाहते है तो संपर्क करे हमारे विशेषज्ञ पंडित जी से |  अगर किसी भी तरह की परेशानी है, जिस से आप मुक्ति चाहते है,या आपके जीवन, कुंडली से सम्बंधित जानकारी चाहते है, तो सलाह ले हमारे जाने माने ज्योतिषीय सलाहकारों से कॉल करे (Call Us+91 9009444403 या हमे व्हाट्सएप्प (Whatsapp) पर सन्देश (Message) भेजे एवं जानकारी प्राप्त करे |

नोट:-  सलाह शुल्क सिर्फ ५०० रुपये| (Consultancy Fee Rs 500)


देवी के दस महाविद्या स्वरुप में से एक स्वरुप माँ बगलामुखी का है. इन्हें पीताम्बरा और ब्रह्मास्त्र भी कहा जाता है. ये स्वयं पीली आभा से युक्त हैं और इनकी पूजा में पीले रंग का विशेष प्रयोग होता है. इनको स्तम्भन शक्ति की देवी माना जाता है. सौराष्ट्र में प्रकट हुये महातूफ़ान को शान्त करने के लिये भगवान विष्णु ने तपस्या की थी और इसी तपस्या के फलस्वरुप माँ बगलामुखी का प्राकट्य हुआ था. शत्रु और विरोधियों को शांत करने के लिये तथा मुकदमे में विजय के लिये इनकी उपासना अचूक है. इस बार माँ बगलामुखी का जन्मोत्सव 19 अप्रैल को मनाया जाएगा.

माँ बगलामुखी के पूजा के नियम और सावधानियां क्या हैं?

– इनकी पूजा तंत्र की पूजा है अतः बिना किसी गुरु के निर्देशन के नही करनी चाहिए

– इनकी पूजा कभी भी किसी के नाश के लिये न करें

– इनकी पूजा में व्यक्ति को पीले आसन, पीले वस्त्र, पीले फल और पीले नैवैद्य का प्रयोग करना चाहिए

– इनके मन्त्र जाप के लिये हल्दी की माला का प्रयोग करें

– पूजा का उपयुक्त समय है सँध्याकाल या मध्यरात्रि

– शत्रु और विरोधियों को शांत करने के लिए, बगलामुखी जन्मोत्सव पर इनकी पूजा जरूर करें.

 

शत्रु और विरोधियों को शांत करने के लिये कैसे करें मां बगलामुखी की उपासना?

– चौकी पर पीले रंग का वस्त्र बिछाएं

– इस पर माँ बगलामुखी के चित्र या प्रतिमा की स्थापना करें

– उनके सामने अखंड दीपक जलायें , उन्हे पीले पुष्प और पीला नैवेद्य अर्पित करें

– सबसे पहले इनके भैरव, मृत्युंजय की उपासना करें

– फिर बगला कवच का पाठ करें

– इसके बाद अपने संकल्प के साथ इनके मन्त्र का जाप करें

– मंत्र होगा – “ऊँ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय, जिह्ववां कीलय, बुद्धि विनाशय, ह्रीं ॐ स्वाहा”

– कम से कम छत्तीस हज़ार या एक लाख मंत्रो का जाप करें

– अनुष्ठान के बाद दशांश हवन भी करें

दरिद्रता नाश के लिये माँ बगलामुखी की उपासना कैसे करें?

– इसके लिए नित्य प्रातः माँ बगलामुखी की उपासना करें

– हल्दी की माला से दरिद्रता नाश के मन्त्र क जाप करें

– मंत्र होगा – “श्रीं ह्रीं ऐं भगवती बगले मे श्रियं देहि देहि स्वाहा”

– पूर्ण सात्विकता बनाये रखें.

माँ बगलामुखी की सदैव कृपा पाने के लिए क्या करें?

– बगलामुखी जयंती के दिन माँ बगलामुखी को दो गाँठ हल्दी की अर्पित करें

– माँ से शत्रु और विरोधियों के शांत हो जाने की प्रार्थना करें

– एक हल्दी की गाँठ अपने पास रख लें

– दूसरी गाँठ को जल प्रवाहित कर दें

– आप हर तरह की शत्रु बाधा से सुरक्षित रहेंग.

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शादी के रिश्ते की डोर बहुत नाजुक होती है. इसे संभालने के लिए बड़े जतन करने पड़ते हैं.  तमाम कोशिशों के बावजूद कुछ लोगों की शादीशुदा जिंदगी में परेशानियां आ ही जाती हैं. आइए जानते हैं राशि के हिसाब से महिलाओं के वैवाहिक जीवन में कौन सी समस्याएं आती हैं….

मेष राशि- इस राशि की महिलाओं के वैवाहिक जीवन में मुख्य रूप से ससुराल पक्ष के रिश्ते समस्या देते हैं.

उसमे भी ननदों के साथ के रिश्ते समस्या का कारण बनते हैं.

पति की नशे की प्रवृत्ति भी समस्या होती है.

इस समस्या को समाप्त करने के लिए रोज प्रातः शिव जी को जल अर्पित करें.

वृष राशि- वृष राशी की महिलाओं के जीवन में मुख्य रूप से उनकी मानसिक संवेदनशीलता समस्या देती है.

उनके वैवाहिक जीवन में उनके मायके पक्ष के लोग समस्या देते हैं.

इन्हे अपने पति का समय न मिल पाना भी एक बड़ी समस्या है

इस समस्या के निवारण के लिए नित्य प्रातः हनुमान जी को लाल फूल अर्पित करें.

मिथुन राशि- मिथुन राशी की महिलाओं के जीवन में ससुराल पक्ष से समस्या होती है,

इनका तालमेल अपने देवर और देवरानी से नहीं बनता

इसी कारण से उनके वैवाहिक जीवन में समस्या होती रहती है.

नित्य प्रातः सूर्य को हल्दी मिलाकर जल चढ़ाइए , समस्या गायब हो जायेगी.

कर्क राशि – ये बहुत संवेदनशील होती हैं अतः इनको अलग अलग समय अलग अलग रिश्ते परेशान करते हैं.

अक्सर उनके वैवाहिक जीवन में बाहर की महिलाएं या कभी कभी उनकी अपनी भाभी समस्या का कारण बनती है.

इस समस्या को दूर करने के लिए नित्य सायंकाल तुलसी के नीचे घी का दीपक जलाना चाहिए.

सिंह राशि- सिंह राशी की महिलाओं के जीवन में उनकी सास अक्सर समस्या का कारण बनती है.

बहु और सास के बीच प्रभुत्व को लेकर विवाद होते हैं और ये वैवाहिक जीवन को ख़राब कर देते हैं.

इससे बचने के लिए इनको शनिवार को पीपल के वृक्ष में जल डालना चाहिए.

कन्या राशि- कन्या राशी की महिलाएं अपने पति के मित्रों से काफी परेशान होती हैं,

इनके कारण वैवाहिक जीवन में उनको बाधा महसूस होती है.

इस बाधा से बचने के लिए इनको पीले वस्त्रों का प्रयोग करना चाहिए ,

साथ ही बृहस्पतिवार को पीली चीज़ों का सेवन नहीं करना चाहिए.

तुला राशि- तुला राशी की महिलाओं के जीवन में उनका अपना मायका पक्ष समस्या देता है.

इनके अपने माता पिता वैवाहिक जीवन में समस्या का कारण बनते हैं.

इससे बचने के लिए इनको मंगलवार को हनुमान जी का दर्शन करना चाहिए.

वृश्चिक राशि- इनके जीवन में उनके जेठ-जिठानी या देवर देवरानी अकसर बाधा पैदा करते हैं.

इनके साथ तालमेल ख़राब होता है और पारिवारिक विभाजन की नौबत आ जाती है.

इससे बचने के लिए इनको हर शुक्रवार को दही का दान करना चाहिए

साथ ही काले रंग के वस्त्रों से परहेज करना चाहिए.

धनु राशि-  इनके जीवन में दो चीजें वैवाहिक जीवन को ख़राब करती हैं – एक उनका क्रोध और दूसरा उनकी ननद.

दोनों कारण मिलकर मामला शुरू से ही काफी ख़राब कर देते हैं.

ऐसी दशा में इस राशी की महिलाओं को सूर्य को जल देना चाहिए

साथ ही हरी वस्तुओं का दान करना चाहिए.

मकर राशि- मकर राशी की महिलाओं के लिए आम तौर पर रिश्ते समस्या नहीं देते ,

उनका बहुत ज्यादा भौतिकवादी होना और करियर की तरफ जरूरत से ज्यादा झुकाव मुश्किल देता है.

थोड़ा सा रिश्तों पर ध्यान दें और अपने बेहतरीन दिमाग का प्रयोग करें

इनको भगवान शिव को नित्य प्रातः जल अर्पित करना चाहिए.

कुम्भ राशि- इनके लिए इनके पति के दोस्त और पति के भाई समस्या का कारण बनते हैं.

इनके साथ पति का जरूरत से ज्यादा समय देना समस्या का कारण बनता है.

इस समस्या से निजात के लिए इनको हर रविवार को मीठी वस्तुओं का दान करना चाहिए.

मीन राशि- मीन राशी की महिलाएं आम तौर पर वैवाहिक जीवन में गंभीर नहीं होती

साथ ही उनका तालमेल अपनी सास से बिलकुल नहीं होता अतः रोज रोज घर में क्लेश होता है.

इस समस्या से निजात पाने के लिए इनको नित्य प्रातः माँ दुर्गा को सिन्दूर अर्पित करना चाहिए.

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गीता में चौथे अध्याय के एक श्लोक में भगवान कृष्ण ने कहा है :
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥

इसका मतलब है, हे भारत, जब-जब धर्म की हानि होने लगती है और अधर्म बढ़ने लगता है, तब-तब मैं स्वयं की रचना करता हूं, अर्थात् जन्म लेता हूं. मानव की रक्षा, दुष्टों के विनाश और धर्म की पुनःस्थापना के लिए मैं अलग-अलग युगों (कालों) में अवतरित होता हूं.

तो आइए जानें श्रीहरि के दशावतारों के बारे में :

1. मत्स्य अवतार :
मत्स्य अवतार भगवान विष्णु का पहला अवतार है. इस अवतार में विष्णु जी मछली बनकर प्रकट हुए थे. मान्यता के अनुसार एक राक्षस ने जब वेदों को चुरा कर समुद्र की गहराई में छुपा दिया था, तब भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार में आकर वेदों को पाया और उन्हें फिर स्थापित किया.

2. वराह अवतार :
वराह अवतार हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु के दस अवतारों में से तीसरा अवतार है. इस अवतार में भगवान ने सुअर का रूप धारण करके हिरण्याक्ष राक्षस का वध किया था.

3. कच्छप अवतार :
कूर्म अवतार को ‘कच्छप अवतार’ भी कहते हैं. इसमें भगवान विष्णु कछुआ बनकर प्रकट हुए थे. कच्छप अवतार में श्री हरि ने क्षीरसागर के समुद्रमंथन में मंदर पर्वत को अपने कवच पर रखकर संभाला था. मंथन में भगवान विष्णु, मंदर पर्वत और वासुकि सर्प की मदद से देवताओं और राक्षसों ने चौदह रत्न पाए थे.

4. नृसिंह भगवान :
ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु के दस अवतारों में से चौथा अवतार नृसिंह हैं. इस अवतार में लक्ष्मीपति नर-सिंह मतलब आधे शेर और आधे मनुष्य बनकर प्रकट हुए थे. इसमें भगवान का चेहरा शेर का था और शरीर इंसान का था. नृसिंह अवतार में उन्होंने अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए उसके पिता राक्षस हिरणाकश्यप को मारा था.

5. वामन अवतार :
भगवान विष्णु पांचवां अवतार हैं वामन. इसमें भगवान ब्राम्हण बालक के रूप में धरती पर आए थे और प्रहलाद के पौत्र राजा बलि से दान में तीन पद धरती मांगी थी. तीन कदम में वामन ने अपने पैर से तीनों लोक नाप कर राजा बलि का घमंड तोड़ा था.

6. परशुराम :
विष्णु के अवतार परशुराम राजा प्रसेनजित की बेटी रेणुका और भृगुवंशीय जमदग्नि के पुत्र थे. दशावतारों में से वह छठवां अवतार थे. जमदग्नि के पुत्र होने की वजह से इन्हें ‘जामदग्न्य’ भी कहते हैं. वह शिव के परम भक्त थे. भगवान शंकर ने इनकी भक्ति से प्रसन्न होकर परशु शस्त्र दिया था. इनका नाम राम था और परशु लेने के कारण वह परशुराम कहलाते थे. कहा जाता है इन्होंने क्षत्रियों का कई बार विनाश किया था. क्षत्रियों के अहंकारी विध्वंश से संसार को बचाने के लिए इनका जन्म हुआ था.

7. श्रीराम :
विष्णु के दस अवतारों में से एक मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम हैं. महर्षि वाल्मिकि ने राम की कथा संस्कृत महाकाव्य रामायण में लिखी थी. तुलसीदास ने भक्ति काव्य श्री रामचरितमानस की रचना की थी. राम, अयोध्या के राजा दशरथ और उनकी पहली रानी कौशल्या के पुत्र थे.

8. श्री कृष्ण :
यशोदा नंदन श्री कृष्ण भी विष्णु के अवतार थे. भागवत ग्रंथ में भगवान कृष्ण की लीलाओं की कहानियां है. इनके गोपाल, गोविंद, देवकी नंदन, वासुदेव, मोहन, माखन चोर, मुरारी जैसे अनेकों नाम हैं. यह मथुरा में देवकी और वसुदेव के पुत्र के रूप में प्रकट हुए थे. श्री कृष्ण की महाभारत के युद्ध में बहुत बड़ी भूमिका थी. वह इस युद्ध में अर्जुन के सारथी थे. उनकी बहन सुभद्रा अर्जुन की पत्नी थीं. उन्होंने युद्ध से पहले अर्जुन को गीता उपदेश दिया था.

9. भगवान बुद्ध :
भगवान विष्णु के दशावतारों में से एक बुद्ध भी हैं. इनको गौतम बुद्ध, महात्मा बुद्ध भी कहा जाता है. वह बौद्ध धर्म के संस्थापक माने जाते हैं. बौद्ध धर्म संसार के चार बड़े धर्मों में से एक है. इनका जन्म क्षत्रि‍य कुल के शाक्य नरेश शुद्धोधन के पुत्र के रूप में हुआ था. इनका नाम सिद्धार्थ रखा गया था. गौतम बुद्ध अपनी शादी के बाद बच्चे राहुल और पत्नी यशोधरा को छोड़कर संसार को मोह-माया और दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग पर निकल गए थे.

10. कल्कि अवतार :
कल्कि अवतार भगवान विष्णु का आखरी अवतार माना जाता है. कल्कि पुराण के अनुसार श्री हरि का ‘कल्कि’ अवतार कलियुग के अंत में होगा. उसके बाद धरती से सभी पापों और बुरे कर्मों का विनाश होगा.

अगर आप किसी भी प्रकार की जानकारी चाहते है तो संपर्क करे हमारे विशेषज्ञ पंडित जी से |  अगर किसी भी तरह की परेशानी है, जिस से आप मुक्ति चाहते है,या आपके जीवन, कुंडली से सम्बंधित जानकारी चाहते है, तो सलाह ले हमारे जाने माने ज्योतिषीय सलाहकारों से कॉल करे (Call Us+91 9009444403 या हमे व्हाट्सएप्प (Whatsapp) पर सन्देश (Message) भेजे एवं जानकारी प्राप्त करे |

नोट:-  सलाह शुल्क सिर्फ ५०० रुपये| (Consultancy Fee Rs 500)