28 अप्रैल अक्षय तृतीया का दिन, जानें किस प्रकार करें माँ लक्ष्मी की आराधना

अक्षय तृतीया एक ऐसा दिन जिसमे यदि आप कोई भी नए व्यापर की शुरुआत या गृह प्रवेश कर रहे है तो तो वो अच्छा होता है। इस दिन यदि माँ लक्ष्मी की पूजा की जाए तो वो अवश्य प्रसन्न होती हैं। इस वर्ष अक्षय तृतीया 28 अप्रैल शुक्रवार को है। इस दिन को साल में होने वाले 4 अबूझ मुहूर्त में से एक माना जाता है। आइये आज हम अक्षय तृतीया के दिन किस प्रकार माँ लक्ष्मी की आराधना करें जानें।

 

माँ लक्ष्मी की पूजा विधि:

सर्वप्रथम प्रातः काल स्नान आदि करके पूजा के लिए किसी चौकी या किसी कपडे के पवित्र आसान पे माँ लक्ष्मी की मूर्ति को स्थापित करें। उसके बाद माँ के समक्ष एक स्वच्छ वर्तन में केसर से युक्त चन्दन के द्वारा अष्टदल कमल को निर्मित करें तथा उस कमल पे घर के गहने व् रूपये रखें और पूजा करें। जल को थोड़ा सा अपने दाहिने हाथों में रखकर अपने ऊपर छिड़के। उसके बाद वर्तन में रखे हुए चीजों के ऊपर छिड़के तथा मन्त्रों का उच्चारण करें:

ऊं अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।

य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:।।

उसके बाद जल और अक्षत लेकर संकल्प करें:

संकल्प: आज वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि नक्षत्र कृतिका, सोमवार है।मैं (अपना नाम), जो (जोतर का नाम बोलें) से हूँ। मैं श्रुति, स्मृति, पुराणों के अनुसार फल प्राप्ति और मनोकामना पूर्ति के लिए अपने मन, कर्म तथा वचन से पाप मुक्त होकर माँ लक्ष्मी की पूजा करने का संकल्प लेता हूँ। तत्पश्च्यात उस जल को छोड़ दे।

उसके बाद अपने बाएं हाथ में अक्षत लेकर मन्त्रों का उच्चारण करते हुए माँ लक्ष्मी के चरण कमलों में दाहिने हाथों से अर्पण करते चलें।

ऊं मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ समिमं दधातु। विश्वे देवास इह मादयन्तामोम्प्रतिष्ठ।।

ऊं अस्यै प्राणा: प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा: क्षरन्तु च।

अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन।।

 

उसके बाद मंत्रो के द्वारा माँ का षोडशोपचार पूजन(पूजन के सोलह अंगा या कृत्य आसन, स्वागत, अर्ध्य, आचमन, मधुपर्क, स्नान, वस्त्राभरण, यज्ञोपवीत, चंदन, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, तांबूल,परिक्रमा और वंदना।) करें।

 

पूजन के बाद माँ लक्ष्मी को हाथ जोड़कर प्रार्थना करें।

अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेsहर्निशं मया ।

 

दासोsयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्र्वरि ॥ १

 

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् ।

 

पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्र्वरि ॥ २

 

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्र्वरि ।

 

यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे ॥ ३

 

अपराधशतं कृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत् ।

 

यां गतिं सम्वान्पोते न तां ब्रह्मादयः सुरा: ॥ ४

 

सापाराधोsस्मि शरणं प्राप्पस्त्वां जगदम्बिके ।

 

इदानीमनुकम्प्योsहं यथेच्छसि तथा कुरू ॥ ५

 

अज्ञानाद्विस्मृतेर्भ्रान्त्या यन्न्यूनमधिकं कृतम् ।

 

तत्सर्व क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्र्वरि ॥ ६

 

कामेश्र्वरि जगन्मातः सच्चिदानन्दविग्रहे ।

 

गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्र्वरि ॥ ७

 

गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम् ।

 

सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्र्वरि ॥ ८

 

समर्पण:

पूजा के अंत में कृतोनानेन पूजनेन भगवती महालक्ष्मीदेवी प्रीयताम्, न मम। मन्त्र के द्वारा समस्त पूजा कर्म माँ को समर्पित करते हुए हाथों से जल को छोड़ दें और माँ को घर में आने की प्रार्थना करें।

शुभ मुहूर्त:

पूजा मुहूर्त:

प्रातः 10:29 से 12:36 दोपहर

 

 

ये समस्त जानकारियां शास्त्र के अनुसार है|

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