भारतीय कालगणना के मतानुसार चार स्वयंसिद्ध अभिजीत मुहूर्त हैं- चैत्र शुक्ल प्रतिपदा अर्थात गुडीपाडवा, आखातीज अथवा अक्षय तृतीया, दशहरा एवं दीपावली के पूर्व की प्रदोष तिथि.

भारतीय लोक-मानस सदैव से ऋतु पर्व मनाता रहा है. हर ऋतु के परिवर्तन को मंगलभाव के साथ मनाने के लिए व्रत, पर्व और त्योहारों की एक श्रृंखला लोकजीवन को निरंतर आबद्ध किए हुए हैं. इसी श्रृंखला में अक्षय तृतीया का पर्व वसंत और ग्रीष्म के संधिकाल का महोत्सव है. वैशाख शुक्ल तृतीया को मनाया जाने वाला व्रत-पर्व लोक में बहुश्रुत एवं मान्य है. विष्णु धर्मसूत्र, मत्स्य पुराण, नारद पुराण तथा भविष्य पुराण में इसका विस्तृत उल्लेख किया गया है तथा इसकी कई कथाएं प्रचलित है. सनातन धर्मी जन गृहस्थजन इसे बड़े उत्साह से मनाते हैं. अक्षय तृतीया को दिए गए दान और किए गए स्नान, जप, हवन आदि कर्मों का शुभ और अनंत फल मिलता है. भविष्य पुराण के अनुसार सभी कर्मों का फल अक्षय हो जाता है, इसलिए इसका नाम अक्षय पड़ा है. इस बार अक्षय तृतीया बुधवार 18 अप्रैल 2018 को है. सूर्योदय पूर्व से लेकर रात्रि में  3:03 बजे तक रहेगी.

वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया या आखातीज  कहते हैं. अक्षय का शाब्दिक अर्थ है जिसका कभी क्षय ना हो अर्थात जो स्थाई बना रहे. स्थाई वहीं रह सकता जो सर्वदा सत्य है. यह बातें निश्चित रूप से कही जा सकती है कि सत्य केवल परमात्मा ही है जो अक्षय, अखंड और व्यापक है. यह अक्षय तृतीया तिथि ईश्वर तिथि है. यह  अक्षय तिथि परशुराम जी का जन्मदिन होने के कारण परशुराम तिथि भी कही जाती है. परशुराम जी की गिनती महात्माओं में की  जाती है. अतः यह तिथि चिरंजीवी तिथि भी कहलाती है. चारों युगों सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग में से त्रेता युग का आरंभ इसी आखातीज से हुआ है. त्रेतायुग का आरंभ अक्षय तृतीया  को हुआ है. जिससे इस तिथि को युग की आरंभ की तिथि ‘युगादितिथि’ भी कहते हैं.

अक्षय तृतीया को चारों धामों में से उल्लेखनीय एक धाम भगवान श्रीबद्रीनारायण के पट खुलते हैं. दर्शनार्थियों एवं भक्तों की अपार भीड़ रहती है. भक्तों के द्वारा इस दिन किए हुए पुण्य कार्य, त्याग, दान-दक्षिणा, होम- हवन, गंगा स्नान आदि कार्य अक्षय की गिनती में आ जाते हैं. भगवान भक्तों का प्रसाद प्रेम से ग्रहण करते हैं.

अक्षय तृतीया को वृंदावन में श्री बिहारी जी के चरणों के दर्शन वर्ष में एक बार होते हैं. देश के कोने-कोने से श्रद्धालु भक्त चरण दर्शन के लिए वृंदावन पधारते हैं. आत्मविश्लेषण और आत्मनिरीक्षण का यह दिन हमें  स्वयं का मंथन करने के लिए, आत्मानुशासन एवं अवलोकन की प्रेरणा देने वाला है. यह दिन  ‘निज मनु मुकुरु सुधारि’ का  दिन है. क्षय के कार्यों के स्थान पर अक्षय कार्य करने का दिन है. इस दिन हमें देखना-समझना होगा कि भौतिक रूप से दिखाई देने वाला यह स्थूल शरीर और संसार की समस्त वस्तुओं से क्षयधर्मा है, अक्षय धर्मा नहीं हैं. क्षयधर्मा  वस्तुएं  असद्भावना, अशुद्ध विचार, अहंकार, स्वार्थ, काम, क्रोध तथा लोभ पैदा करती है जिन्हें भगवान श्री कृष्ण ने गीता में आसुरी वृत्ति कहा है. जबकि अक्षयधर्मा सकारात्मक चिंतन- मनन हमें दैवीसंपदा की ओर ले जाता है. हम त्याग, परोपकार, मैत्री, करुणा और प्रेम पाकर परम शांति पाते हैं, अर्थात हमें दिव्य गुणों की प्राप्ति होती है. इस दृष्टि से यह तिथि हमें जीवन मूल्यों का वर्णन करने का संदेश देती है-  सत्यमेव जयते की ओर अग्रसर करती है.

अक्षय तृतीया का दिन सामाजिक पर्व का दिन है. इस दिन कोई दूसरा मुहूर्त ना देख कर स्वयं सिद्ध अभिजीत शुभ मुहूर्त के कारण विवाह उत्सव आदि मांगलिक कार्य संपन्न किए जाते हैं. गीता स्वयं एक अक्षय, अमर निधि  ग्रंथ है. जिसका पठन-पाठन, मनन एवं स्वाध्याय करके हम जीवन की पूर्णता को पा सकते हैं. जीवन की सार्थकता को समझ सकते हैं और अक्षय तत्व को प्राप्त कर सकते हैं. अक्षय के समान हमारा संकल्प दृढ़,  श्रद्धापूर्ण एवं हमारी निष्ठा अटूट होनी चाहिए. तभी हमें व्रतों प्रवासियों व्रत-उपवास का समग्र आध्यात्मिक फल प्राप्त हो सकता है. शास्त्र में उल्लेखित है कि आज के दिन स्वर्ण की खरीदारी भी करनी चाहिए. धन योग बनता है. धन-संपदा में वृद्धि का योग भी बनता है. आज के दिन जो भी कार्य मनुष्य करता है, वह अक्षय हो जाता है. इसलिए धार्मिक एवं शुभ कार्य आज के दिन जरूर करना चाहिए. मरणोपरांत व्यक्ति जीवन मृत्यु के बंधन से मुक्त होकर वैकुंठ लोक को प्राप्त कर लेता है.

 


अक्षय तृतीया पर्व को कई नामों से जाना जाता है. इसे अखातीज और वैशाख तीज भी कहा जाता है. इस पर्व को भारतवर्ष के खास

त्योहारों की श्रेणी में रखा जाता है. इस दिन स्नान, दान, जप, होम आदि अपने सामर्थ्य के अनुसार जितना भी किया जाए, अक्षय रूप में प्राप्त होता है.

क्या है अक्षय तृतीया

अक्षय तृतीया वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कहते हैं. इस दिन जो भी शुभ कार्य किए जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है. सतयुग और त्रेता युग का प्रारंभ इसी तिथि से हुआ है. भगवान विष्णु ने नर-नारायण, हृयग्रीव और परशुराम का अवतरण भी इसी तिथि को हुआ था. बद्रीनाथ की प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती है और श्री लक्ष्मी नारायण के दर्शन किए जाते हैं. प्रसिद्ध तीर्थ स्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से ही पुनः खुलते हैं.

इसी दिन से त्रेता युग की हुई थी शुरुआत
माना जाता है कि इस दिन त्रेता युग की शुरुआत हुई थी. अमूमन परशुराम का जन्मदिन भी इसी दिन आता है. इस दिन सभी विवाहित और अविवाहित लड़कियां पूजा में भाग लेती हैं. इस दिन लोग भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं. कई लोग इस दिन महालक्ष्मी मंदिर जाकर सभी दिशाओं में सिक्के उछालते हैं. सभी दिशाओं में सिक्के उछालने का कारण यह माना जाता है कि इससे सभी दिशाओं से धन की प्राप्ति होती है.

क्‍यों किया जाता है दान
शास्‍त्रों के अनुसार इस खास दिन आप जितना दान-पुण्य करते हैं, आपको उससे कई गुना ज्यादा धन-वैभव मिलता है. इस दिन लोग सोने-चांदी के आभूषण भी खरीदते हैं.
एक पुरातन कथा तो यह भी है कि आज के ही दिन भगवान शिव से कुबेर को धन मिला था और इसी खास दिन भगवान शिव ने माता लक्ष्मी को धन की देवी का आशीर्वाद भी दिया था.

आइए जानें, इस खास दिन दान करने से क्‍या पुण्‍य प्राप्‍त होता है…

– इस दिन दान करना आपको मृत्यु के भय से काफी दूर रखता है.
– कहते हैं इस दिन गरीब बच्चों को दूध, दही, मक्खन, छेना, पनीर आदि का दान करने से मां सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
– अक्षय तृतीया के दिन विशेषकर जौ, तिल और चावल का दान महत्वपूर्ण माना जाता है.
– गंगा स्नान के बाद सत्तू खाने और जौ और सत्तू दान करने से आप अपने पाप से मुक्त होते हैं.

 


शास्त्रों के अनुसार, सबसे पहले रामभक्त हनुमान ने ही रामायण की रचना की थी। लेकिन उन्होंने अपनी लिखी रामायण को अपने हाथों से ही समुद्र में फेंक दिया था। उनके ऐसा करने के पीछे क्या कारण था यहां जानते हैं…

भगवान राम की लीला का वर्णन करते हुए कई रामायण लिखी गई हैं। जो भगवान राम के बारे में जितना जानता था उसने उसी अनुसार रामायण की रचना की। हममे से अधिकतर लोग वाल्मीकि रामायण के बारे में ही जानते हैं। लेकिन बाल्मिकी जी तो अयोध्यापुरी में रहते थे, ऐसे में दंडकारण्य में रामजी के साथ क्या-क्या घटा यह दंडकारण्य के ऋषि ही जानते थे। इस तरह अनेक रामायण अस्तित्व में आईं।

सभी रामायणों में वाल्मीकि रामायण को मान्यता मिली क्योंकि वह महान ऋषि थे और उन्हें खुद भगवान हनुमान ने वरीयता दी थी।

शास्त्रों के अनुसार, भक्त शिरोमणि हनुमान द्वारा लिखी गई रामायण को हनुमद रामायण के नाम से जाना जाता है। हनुमानजी ने इस रामायण की रचना तब की जब रावण पर विजय प्राप्त करने के बाद भगवान राम अयोध्या पर राज करने लगे थे।

रामाज्ञा पाकर हनुमानजी तपस्या करने हिमालय पर चले गए थे। वहां शिव आराधना के दौरान वह हर दिन रामायण की कथा अपने नाखूनों से पत्थर की शिला पर लिखते थे।

एक दिन हनुमानजी यह शिला उठाकर कैलाश पर्वत पर ले जाते हैं और भगवान शिव को दिखाते हैं। कुछ समय बाद वाल्मीकि जी भी अपनी रामायण लेकर शिव के समक्ष जाते हैं। ऐसे में ऋषिवर देखते हैं कि वहां पहले से शिला पर रामायण लिखी हुई है, जो स्वयं रामभक्त हनुमान ने लिखी। यह देख वह निराश होकर लौटने लगते हैं।

उन्हें निराश होकर जाता देख हनुमानजी उनसे इसका कारण पूछते हैं, तब ऋषि वाल्मीकि कहते हैं, भगवन बहुत तपस्या के बाद मैंने यह रामायण लिखी थी लेकिन आपकी रामायण के आगे मेरी लिखी रामायण तो कुछ भी नहीं। देखकर ही लगता है कि आपकी लिखी रामायण के आगे मेरी रामायण उपेक्षित हो जाएगी।

यह सुनकर हनुमानजी को बहुत कष्ट हुआ। तब उन्होंने एक कंधे पर अपनी रामायण लिखी शिला को उठाया और दूसरे कंधे पर ऋषि वाल्मीकि को बैठाकर समुद्र में ले गए।

वहां हनुमानजी ने ऋषि वाल्मीकि के सामने ही अपनी रामायण लिखी शिला को श्रीराम को समर्पित करते हुए समुद्र में फेंक दिया। बस इसीलिए हनुमद रामायण उपलब्ध नहीं है।


दक्षिण दिशा के स्वामी यमराज माने जाते हैं। वास्तु विज्ञान के मुताबिक दक्षिण की ओर पैर करके सोने और मुख करके बैठने से आपके आस-पास नकारात्मक ऊर्जा का संचार होता रहता है।

 वास्तुशास्त्र में दक्षिण दिशा को  शुभ नहीं माना जाता है। वास्तु विज्ञान के अनुसार इस दिशा के स्वामी यमराज माने जाते हैं।  इसे संकट का द्वार भी कहा जाता है। यही कारण है कि लोग अधिक कीमत देकर भी पूर्व दिशा की ओर मुंह वाला मकान खरीदना पसंद करते हैं और दक्षिण की ओर मुंह वाला घर कम कीमत में भी लेना पसंद नहीं करते हैं।

वास्तु विज्ञान के मुताबिक दक्षिण की ओर पैर करके सोने और मुख करके बैठने से आपके आस-पास नकारात्मक ऊर्जा का संचार होता रहता है। वास्तु विज्ञान में इसके पीछे का तर्क है कि पृथ्वी गुरुत्वाकर्षण बल पर टिकी है। वह अपनी धुरी पर लगातार घूमती है। इसकी धुरी के उत्तर-दक्षिण दो छोर हैं। यह चुंबकीय क्षेत्र होता है। इसलिए जब भी इंसान दक्षिण दिशा में पैर करके सोता है तो वह तो पृथ्वी की धुरी के समानांतर हो जाता है। इससे धुरी के चुंबकीय प्रभाव से रक्तप्रवाह प्रभावित होता है। इससे हाथ-पैर में दर्द, कमर दर्द, शरीर का कांपना आदि जैसे दोष हो जाते हैं।

दक्षिण की तरफ मुख्य द्वार
घर का मुख्य दरवाजा कभी भी दक्षिण दिशा की तरफ नहीं होना चाहिए। यदि आपका दरवाजा दक्षिण की तरफ है तो द्वार के ठीक सामने एक आदमकद दर्पण इस प्रकार लगाएं जिससे घर में प्रवेश करने वाले व्यक्ति का पूरा प्रतिबिंब दर्पण में बने। इससे घर में प्रवेश करने वाले व्यक्ति के साथ घर में प्रवेश करने वाली नकारात्मक उर्जा पलटकर वापस चली जाती है। द्वार के ठीक सामने आशीर्वाद मुद्रा में हनुमानजी की मूर्ति अथवा तस्वीर लगाने से भी दक्षिण दिशा की ओर मुख्य द्वार का वास्तुदोष दूर होता है।

मंद होती है फेफड़ों की गति  
दक्षिण दिशा में सोने से फेफड़ों की गति मंद हो जाती है। इसीलिए मृत्यु के बाद इंसान के पैर दक्षिण दिशा की ओर कर दिए जाते हैं ताकि उसके शरीर से बचा हुआ जीवांश समाप्त हो जाए। दक्षिण, यम की दिशा मानी जाती है। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार यम को मृत्यु का देवता माना जाता है। इसके अलावा यदि आपकी तिजारो इस दिशा में है तो बरकत एवं लाभ के लिए दिशा बदल लेनी चाहिए। वहीं, शौचालय में सीट इस प्रकार रखनी चाहिए कि शौच करते वक्‍त मुख उत्‍तर या दक्षिण दिशा की ओर रहे और दरवाजा सदैव बंद रखना चाहिए।