मकर संक्रांति में गंगा स्नान का महत्व

भारतवर्ष में यूं तो कई तरह के त्योहार मनाए जाते हैं लेकिन मकर संक्रांति के पर्व की बात ही निराली है।

भारत के अलग−अलग हिस्सों में इस पर्व को भिन्न−भिन्न तरीकों से मनाया जाता है। लेकिन क्या आप इस बात से वाकिफ हैं कि वास्तव में इस पर्व को मनाने की वजह क्या है। नहीं न, तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कि मकर संक्रांति के पर्व को इतने हर्षोल्लास के साथ क्यों मनाया जाता है−

खगोलीय कारण

भारत में मनाया जाने वाला यह एक ऐसा पर्व है, जो खगोलीय घटना पर आधारित है। दरसअल, साल को दो भागों उत्तरायण व दक्षिणायन में विभाजित किया गया है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य छह माह दक्षिणायन में रहने के बाद उत्तरायण में जाता है। इसलिए बहुत सी जगहों पर इस पर्व को उत्तरायण भी कहा जाता है। भारत में मनाया जाने वाला यह एक ऐसा पर्व है, जो खगोलीय घटना पर आधारित है। इन दिन पृथ्वी का उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य की ओर मुड़ जाता है। उत्तरायण में दिन बड़े हो जाते हैं और रातें छोटी होने लगती हैं। शास्त्रों के अनुसार, उत्तरायण देवताओं का दिन और दक्षिणायन देवताओं की रात होती है। इस त्योहार के शुभ मुहूर्त में स्नान और दान−पुण्य को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। 

राशियों में परिवर्तन

संक्रांति का अर्थ होता है सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में जाना। वह राशि जिसमें सूर्य प्रवेश करता है, संक्रांति संज्ञा से नाम से विख्यात है। चूंकि इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। इसलिए इस उत्सव को मकर संक्रांति कहकर पुकारा जाता है। 

प्राकृतिक कारण

मकर संक्रांति के पर्व का संबंध प्रकृति, ऋतु परिवर्तन और कृषि से जुड़ा है। एक ओर जहां, मकर संक्रांति के पर्व के बाद शीत ऋतु का प्रभाव कम होने लगता है। वहीं किसानों के लिए यह समय फसल काटने का होता है। किसान इस पर्व को आभार दिवस के रूप में मनाते हैं। मकर संक्रांति के पर्व पर वह भगवान व प्रकृति का आभार प्रकट करते हैं। इस दिन खासतौर से, सूर्य की पूजा की जाती है क्योंकि सूर्य को ही प्रकृति का कारक माना जाता है।

पौराणिक तथ्य 

मकर संक्रांति को लेकर कई तरह की पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। आज के दिन गंगा सागर, वाराणसी, त्रिवेणी संगम, हरिद्वार, पुष्कर, उज्जैन की शिप्रा, लोहाग्रल आदि तीर्थ स्थलों पर भारी संख्या में श्रद्धालु स्नान करते हैं और भगवान सूर्य को जल चढ़ाते हैं। मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा जी ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए व्रत किया था। माना जाता है कि सूर्य के उत्तरायण में देह त्याग करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और यही कारण है कि महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपना देह त्याग करने के लिए इस दिन को चुना था। इसके अतिरिक्त माना जाता है कि मकर संक्रांति के दिन ही गंगा जी भागीरथ के पीछे−पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थी और इसलिए गंगा स्नान को काफी महत्व दिया जाता है। इसलिए लोग इस दिन व्रत व दान को काफी महत्व देते हैं। शास्त्रीय मान्यता के अनुसार, इस दिन तिल से बने व्यंजनों का दान करने से शनि का कुप्रभाव कम होता है।

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