Maha Mrityunjay Puja (महा मृत्‍युंजय)

महामृत्युंजय मंत्र शुद्ध मंत्र है भारतीय पौराणिक कथाओं और आध्यात्मिकता में। यह मंत्र भगवान शिव के समर्पित है। यह 3 हिंदी भाषा के शब्दों अर्थात ‘महा’, जिसका अर्थ है महान, ‘मृत्युन’ का अर्थ मृत्यु और ‘जया’ का मतलब जीत है, जो कि जीत या मौत पर जीत में बदल जाता है। इसे ‘रुद्र मंत्र’ या ‘त्रयम्बकं मंत्र’ कहा जाता है। रुद्र भगवान शिव को दर्शाता है।

 

ॐ त्र्यंबकम् मंत्र में 33 अक्षर होते है जो महर्षि वशिष्ठर के अनुसार बताया गया की ये 33 देवताआं के घोतक हैं। और उन तैंतीस देवताओं में 8 वसु 11 रुद्र और 12 आदित्यठ, 1 प्रजापति तथा 1 षटकार हैं। इन तैंतीस देवताओं की सम्पुर्ण शक्तियाँ महामृत्युंजय मंत्र से समाहित है इसलिए महामृत्युंजय का पाठ करने वाला प्राणी दीर्घायु को प्राप्त करता है। इसके साथ ही वह नीरोग, ऐश्व‍र्य युक्ता धनवान भी होता है । महामृत्युंजय का जो पाठ करता है वो प्राणी हर दृष्टि से सुखी एवम समृध्दिशाली होता है । भगवान शिव की अमृतमययी कृपा उस पे निरन्तंर बरसती रहती है।

 

मंत्र के पदों में स्थित शक्तियॉं

जिस प्रकार मंत्रा में अलग अलग वर्णो (अक्षरों ) की शक्तियाँ हैं । उसी प्रकार अलग – अल पदों की भी शक्तियॉं है।

त्र्यम्‍‍बकम् – त्रैलोक्यक शक्ति का बोध कराता है जो सिर में स्थित है।

यजा- सुगन्धात शक्ति का घोतक है जो ललाट में स्थित है ।

महे- माया शक्ति का द्योतक है जो कानों में स्थित है।

सुगन्धिम् – सुगन्धि शक्ति का द्योतक है जो नासिका (नाक) में स्थित है।

पुष्टि – पुरन्दिरी शकित का द्योतक है जो मुख में स्थित है।

वर्धनम – वंशकरी शक्ति का द्योतक है जो कंठ में स्थित है ।

उर्वा – ऊर्ध्देक शक्ति का द्योतक है जो ह्रदय में स्थित है ।

रुक – रुक्तदवती शक्ति का द्योतक है जो नाभि में स्थित है।

मिव रुक्मावती शक्ति का बोध कराता है जो कटि भाग में स्थित है ।

बन्धानात् – बर्बरी शक्ति का द्योतक है जो गुह्य भाग में स्थित है ।

मृत्यो: – मन्त्र्वती शक्ति का द्योतक है जो उरुव्दंय में स्थित है।

मुक्षीय – मुक्तिकरी शक्तिक का द्योतक है जो जानुव्दओय में स्थित है ।

मा – माशकिक्तत सहित महाकालेश का बोधक है जो दोंनों जंघाओ में स्थित है ।

अमृतात – अमृतवती शक्तिका द्योतक है जो पैरो के तलुओं में स्थित है।

 

||महा मृत्‍युंजय मंत्र ||

ॐ त्र्यम्‍बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।

उर्वारुकमिव बन्‍धनान् मृत्‍योर्मुक्षीय मा मृतात् ।।

Book Maha Mritunjaya In Trimbakeshwar