Kalsarp Yog (कालसर्प योग )

जब भी कोई जिव इस धरती पे जन्म लेता है वो समय उस जिव के लिए सबसे महत्वपूर्ण हो जाता है। क्योंकि हमारे शास्त्रों के अनुसार उस समय को आधार बनाकर ज्योतिष शास्त्र की मदद से उस जिव के पुरे जीवन का लेख-जोखा बनाया जाता है। ज्योतिष की मदद से जीवन में आने वाले सुख-दुःख के बिषम परिस्थितियों के बारे में जान सकते हैं और यहाँ तक की दुःख के प्रभाव को कम करने के उपायों के बारे में जान सकते हैं।

जन्म के उपरांत उस समय को लेकर( जन्म के समय को आधार बनाके) ज्योतिषाचार्य जन्म की कुंडली बनाते हैं जिसमे जन्म कुंडली के बारह भाव रहते हैं। और कोई भी ज्योतिष इन्ही भावों में नव ग्रह की स्थित को देखकर किसी के भविष्य बताते है।

लेकिन जब जन्म कुंडली में स्थित सभी ग्रह राहु-केतु के एक ही ओर स्थिति हो तो उसे ही शास्त्रों में कालसर्प योग कहा जाता है। ये योग सभी के जीवन के लिए हानिकारक होता है, यदि अगर किसी के जन्म कुंडली में ये योग बनता है।

 

राहु-केतु मतलब कालसर्प योग

अगर किसी पे कालसर्प योग है तो उसके जीवन में राहु-केतु भाग्य के प्रवाह को रोकते हैं। जिसके कारण अगर कोई कितना भी मेहनत क्यों न करे उसे कभी भी पूर्णतः सफलता नहीं मिलता। उसे जीवन में कई समस्या का सामना करना पड़ता है। उनका विवाह होने में भी समस्या उत्पन्न होती है। ओर अगर विवाह हो गया है तो उन्हें अपने वैवाहिक जीवन में कई झगडे देखने पड़ सकते हैं।

अगर किसी व्यक्ति के जीवन में कालसर्प योग है तो उसे हमेशा परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है चाहे कोई माने या न माने। किसी के मानने या न मानने से शास्त्र या सिद्धान्त कभी भी नहीं बदलता है। शास्त्रों में हमारे ज्योतिषाचार्यों ने सर्प के मुख राहु ओर पुंछ केतु के मध्य में सभी ग्रहों के आने से बनने वाले स्थिति को कालसर्प योग कहा है।

किसी के भाग्य को निर्णय करने में राहु-केतु का महत्वपूर्ण योगदान है। इसी कारण से विंशोत्तरी महादशा में 18 वर्ष एवं अष्टोत्तेरी महादशा मे 12 वर्ष राहु दशा के लिए हमारे शास्त्री ओर आचार्या ने निर्धारित किए है। राहु ओर केतु दो तमोगुणी एवं पापी ग्रह है जिसके बीच आने वाले सभी ग्रह की स्थिति अशुभ हो जाता है। इसलिए कालसर्प योग होने पे सभी के जीवन में हमेशा परेशानी का सामना करना पड़ता है। वैसे तो राहु-केतु छाया ग्रह है फिर भी उन्हें नवग्रहों में स्थान दिया गया है।

 

आइये अब जाने की किस दिन किस समय पे राहु काल होता है।

सोमवार: सुबह के 07:30 से लेकर सुबह के 09:00 बजे तक

मंगलवार: दोपहर के 3:00 से शाम के 4:30 बजे तक

बुधवार – दोपहर 12:00 से दोपहर के 1:30 बजे तक

गुरुवार -दोपहर 1:30 से दोपहर के 3:00 बजे तक

शुक्रवार – प्रात: 10:30 से दोपहर के 12:00 बजे तक

शनिवार- सुबह 9:00 से 10:30 बजे तक

रविवार – शाम 4:30 से 6:00 बजे तक

 

कालसर्प १२ तरह के होते हैं :

१) अनंत कालसर्प योग:

जब कुंडली में लग्न स्थान पे राहु ओर सप्तम भाव में केतु हो और उनके मध्य में सभी ग्रह है तो इसी योग को अनंत कालसर्प योग कहते हैं। इसके कारण जातक को हमेशा मानसिक शांति नहीं मिलती है। वो हमेशा अशांत, परेशान और अस्थिर रहता है। वो बुद्धिहीन हो जाता है।

२) कुलिक कालसर्प योग:

जब कुंडली में द्वितीय स्थान पे राहु और अष्टम स्थान पे केतु स्थित हो और इसके बीच सभी ग्रह उपस्थित हो तो उसे कुलिक कालसर्प योग कहते हैं।

३) वासुकि कालसर्प योग:

कुंडली के तीसरे स्थान पे राहु और नोवें स्थान पे केतु हो और उनके बीच में सभी ग्रह मौजूद हो तो इसे वासुकि कालसर्प योग कहते हैं।

४) शंखपाल कालसर्प योग:

जब कुंडली में चौथे भाव में राहु और दसवें भाव में केतु हो और उसके मध्य सभी ग्रह स्थित हो तो इस योग को शंखपाल कालसर्प योग कहलाता है।

५) पद्म कालसर्प योग:

जब कुंडली के पंचम स्थान पे राहु और ग्याहरवें स्थान में केतु हो और समस्त ग्रह इनके बीच में आएं तो इससे पद्म कालसर्प योग बनता है।

६) महापद्म कालसर्प योग:

जब कुंडली के छठवें स्थान पे राहु और बारहवें स्थान पे केतु स्थित हो और सभी ग्रह इसके बीच में स्थित हो तो इससे महापद्म कालसर्प योग बनता है।

७) तक्षक कालसर्प योग:

जब कुंडली के सप्तम स्थान पे राहु और केतु लग्न में स्थित हो और इसके बीच सभी ग्रह मौजूद हो तो इससे तक्षक कालसर्प योग का निर्माण होता है।

८) कर्कोटक कालसर्प योग :

जब कुंडली के आठवें स्थान पे राहु और केतु दूसरे स्थान में स्थित हो और इसके बीच सभी ग्रह मौजूद हो तो इससे कर्कोटक कालसर्प योग का निर्माण होता है।

९) शंखनाद कालसर्प योग:

जब कुंडली के नोवें स्थान पे राहु और केतु तीसरे स्थान में स्थित हो और इसके बीच सभी ग्रह मौजूद हो तो इससे शंखनाद कालसर्प योग का निर्माण होता है।

१०) पातक कालसर्प योग:

जब कुंडली के दसवें स्थान पे राहु और केतु चौथे स्थान में स्थित हो और इसके बीच सभी ग्रह उपस्थित हो तो इससे पातक कालसर्प योग का निर्माण होता है।

११) विषाक्तर कालसर्प योग:

जब कुंडली के ग्यारहवें स्थान पे राहु और केतु पंचम स्थान में स्थित हो और इसके बीच सभी ग्रह मौजूद हो तो इससे विषाक्तर कालसर्प योग का निर्माण होता है।

१२) शेषनाग कालसर्प योग:

जब कुंडली के बारहवें स्थान पे राहु और केतु छठवें स्थान में स्थित हो और इसके बीच सभी ग्रह मौजूद हो तो इससे शेषनाग कालसर्प योग का निर्माण होता है।

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